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वन संपदा का कुशलता से प्रबंधन किया जाय, तो बन सकता है स्वरोजगार का जरिया

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग द्वारा आयोजित विकेंद्रीकृत वन प्रबंधन हेतु वन पंचायतों के प्रशिक्षण कार्यक्रम के दूसरे दिन की प्रशिक्षण कार्यशाला में वक्ताओं और वन सरपंचों ने अपने विचार रखे।

विश्वविद्यालय के वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. आर. सी. सुंदरियाल ने कार्यशाला में वनपंचयतों के इतिहास के विषय पर विस्तार से बताते हुए कहा कि वन मानव जीवन के अस्तित्व की आधारभूत इकाई होने के साथ ही एक प्राकृतिक संपदा भी है।यदि हम प्रकृति की निर्धारित सीमाओं के अंतर्गत तथा उससे बेहतर तालमेल बैठाकर इस संपदा का उपयोग करे तो वन संपदा हमारी आजीविका का भी एक महत्वपूर्ण जरिया हो सकती है ।

कार्यशाला में जड़ी-बूटी शोध संस्थान के वैज्ञानिक डॉ सी .पी. कुनियाल ने हिमालयी क्षेत्र में पायी जाने वाली जड़ी बूटियों के औषधीय उपयोगों के साथ ही उनकी खेती तथा विपणन की जानकारी दी। उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान की वैज्ञानिक डॉ मंजू सुंदरियाल ने रिंगाल के साथ ही गैर कास्ट बन उत्पादों की जानकारी देते हुए बताया की झूला, मक्कु के साथ ही रिंगाल तथा अन्य गैर कास्ट प्रजाति की वन संपदा द्वारा हम लघु कुटीर उद्योगों के माध्यम से स्वरोजगार प्राप्त कर सकते हैं।

गोष्ठी में प्रतिभाग करने आये वन सरपंचों ने वन भूमि पर हो रहे अतिक्रमणों का मुद्दा उठाते हुए विभाग से शीघ्र अतिक्रमित भूमि को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराने की मांग की। इस दौरान गोष्ठी में वक्ताओं द्वारा वन प्रबंधन के साथ ही,बर्ड वाचिंग, वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी आदि से स्वरोजगार कैसे प्राप्त कर सकते हैं, की भी विस्तार से जानकारी दी गई।

कार्यशाला में जी.एस. बिष्ट डी.एल. एम. ज़िला चमोली,सामाजिक कार्यकर्ता हेम गैरोला , वन क्षेत्राधिकारी, पीपलकोटी रेंज अनुराग जुयाल,शोध छात्र अक्षय सैनी, आलोक सिंह रावत, रेखा राणा,राजीव बिष्ट सहित विभिन्न वन पंचायतों के वन सरपंचों सहित जिले सभी प्रभागों के वनकर्मी मौजूद थे।