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तुम्हें क्या मालूम हक हकूक धारी कौन और कहाँ के ?

 संजय किमोठी

आजकल लगभग सभी देवी देवताओं के कपाट खुल गये हैं, इन दिनों हमारे पहाड़ के तीन जनपदों,चमोली,रूद्रप्रयाग,और उत्तरकाशी,का पूरा वातावरण देवमयी हो जाता है. यहाँ की हवाओं में भक्ति की महक और ईस्वरीय अनुभूतियाँ कदम कदम पर विचरण करने लगती हैं,देवस्थलों में पहुँचकर यूँ लगता है,देव ,यक्ष,किन्नर,अभी यहीं थे।

ऐसी देवमयी हमारी भूमि और तीर्थस्थलों के हक हकूक धारियों का जीवन किसी तपस्वी से कम नहीं. इन लोगों के पूर्वजों ने किन दुरर्गम परिस्थितयों में सड़कों के अभाव में दुर्गम रास्तों पर पैदल चलकर अपने अपने अराध्य देवों को काँन्धों मे बैठाकर मीलों मील नंगे पैर चलकर बर्फ से भरे रास्तों से गुजरकर धामों में पहुँचाया है,और ये सिलसिला लगतार न जाने किस शताब्दी से चला आ रहा है।

हर तीर्थस्थल के नजदीकी गाँव के ग्रामीणों और पुरोहित पंडितों,ने अपनै क्षेत्र के ठाकुरों,पधानों,और प्रभुत्वशाली,सँपन्न,ब्यक्तियों के दिशा निर्देशनों में इसका कुशल प्रबँन्धन कर रखा था।

ये सब उस दौर से है जब राजसाही भी हमारी नहीं थी और मुगलों का शासन था,जगद गुरू शँकराचार्य जी दक्षिण से हमारे यहाँ पहुंचे और सारी ब्यवस्थाँए चाक चौबन्द हो गयी,तीर्थ स्थलों के पास के गाँव के ग्रामीणोंँ से अनाज इकट्टा कर नमक,तेल,की ब्यवस्था करना और यात्रीगणों को ओढना,बिछौना,देना यह सब कार्य हमारे स्थानीय निवासियों द्वारा किया जाता रहा है।

धीरे धीरे यह ब्यवस्था,पूरे पर्वतीय क्षेत्रों में हक हकूक धारियों में बदल गयी,इन लोगों के पुरखे न जानै कितनी पीढियाँ प्रभु सेवा में समर्पित रही अगर यूँ कहूं इनकी तपस्याऐं ,भगीरथ से कम न थी तो अतिशयोक्ति न होगी।

परंतु आज ये तथाकथित नेतागण और अँबानी, अडानी और लालाओं के शुभचिंतक यहाँ पर जिस तरह का कोहराम मचाना चाहते हैं उसको सफल होने नही देना है।

इस पूरे प्रकरण में गढ़वाल का एक जनपद और उस जनपद के मुट्ठि भर लोग शामिल हैं ,जो बार बार हमारे चमोली,रूद्रप्रयाग में घुसकर यहाँ का माहोल बिगाड़ रहे हैं,हमारे देवी देवताओं और पूरी ब्यवस्था को नीलाम करने पर आमादा हैं।

कभी प्राधिकरण के नाम पर तो कभी बोर्ड के नाम पर इन स्वानरूपी प्राणियों ने पलायन कर अपने घर बार तो उजाड़ ही रखे हैं. अब हम लोगों के मठ मँन्दिरों,और घरों पर इनकी नजर है।

इसलिए अब हक हकूक धरियों को जागना होगा,और जागना ही नही उठकर इनके मँसूबों को इनकी घर की दहलीजों तक घसीट आना होगा।

नहीं तो हमारी आने वाली पीढियाँ आपको गरियायेगी और यही कहेगी नपुँशक थे हमारे लोग. और हम तो न होंगे पर हमारे लोग खुद अपनै घरों में पराये होंगे।