विश्व में तीन ऐसे युवा नेता रहे हैं। जिन्होंने दुनिया खासा प्रभावित किया, जो दशकों बाद भी लोगों के दिलो दिमाग हैं। उनमें अर्जेंटीना के अर्नेस्टो च्ये ग्वेरा, भारत के मुक्ति आन्दोलन के युद्धा शहीदे आजम भगत सिंह और टिहरी रियासत की गुलामी से मुक्ति के प्रेणा श्रोत शहीद नागेंद्र सकलानी। तीनों ही कम्युनिस्ट रहे और बहुत कम उम्र में ही समाजवादी क्रांति के लिए शहीद हुऐ ।
अर्जेटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स के एक मेडिकल विश्व विद्यालय से मेडिसिन से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद 23 साल के डॉ अर्नेस्टो ग्वेरा और उनके दोस्त डॉ अलब्रेटो ग्रानाडो ने लेटिन अमेरिका के देशों को घूमने की योजना बनाई। दोनों डाक्टरी की लंबी पढ़ाई के बाद मानसिक रूप से थक चुके थे और मौज मस्ती के लिऐ घूमने निकल पडे़। लिहाजा, अर्नेस्टो ग्वेरा ने अपनी सिंगल सिलेंडर इंजन वाली नॉरटन बाइक 500 सीसी की मरम्मत कराई और दोनों निकल पड़े लेटीन अमेरिका के देशों की 8000 किलोमीटर लंबी यात्रा पर। अर्नेस्टो ग्वेरा और अलब्रेटा दोनों ही अर्जेटीना के संभ्रांत परिवारों से ताल्लुक रखते थे। हर मां बाप की तरह ही उनके पिता की दिल्ली तमन्ना थी कि उनका बेटा भी किसी बड़े अस्पताल में डाक्टरी करे ,और अर्नेस्टो की भी यही इच्छा थी।
अपनी यात्रा के दौरान च्ये ग्वेरा और उनके साथी ने अमेजन नदी, एंडीज पर्वत श्रंखलाओं को पार करते हुऐ एताकामा मरूस्थल और संघन आबादी से गुजरते हुये नौ महीने की एक लंबी, कठिन और थकान भरी यात्रा करते रहे। किन्तु उनके साथ ऐसी घटना हुई, जिसने उन्हें अर्नेस्टो ग्वेरा से कॉमरेड चे ग्वेरा बना दिया। एक ऐसा इंसान जो दुनिया में समाजवाद, जनवाद और मार्क्सवाद क्रांति का सबसे बड़ा हीरो बनकर पूंजीवाद का गढ़ अमेरिका के लिये सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा।
दरअसल बोलेविया से होकर 15 मार्च 1952 को अर्नेस्टो ग्वेरा और अलब्रेटो ग्रानाडो एंडिज पर्वतों और प्रशांत महासागर के बीच चीली देश पहुंचे। चीली के एक गांव से गुजरते वक्त उन्होंने मजदूरों का एक झुंड (जैसे हर महानगर एवं कस्वों में हर सुबह मजदूर काम की तलाश में खड़े रहते हैं) सड़क किनारे खडे़ देखे। इतने में कोयले की खान का काम करने वाली एनाकोंडा कंपनी का ट्रक वहां पर पहुंचा।
ट्रक से सुपरवाइजर उतरे और उन्होंने हट्टे कट्टे कुछ मजदूरों को साथ चलने को कहा। बाकि मजदूर काम की भीख मांगने लगे। इस पर अर्नेस्टो ग्वेरा ने वहाँ खड़े एक परिवार से पूछा कि वो रो क्यों रहे हैं। तो उन्होंने बताया कि, उनका परिवार दो दिन से भूखा है। कई दिनों से उन्हें काम नहीं मिला है। आज भी नहीं मिला। जिससे वो कमजोर हो गये है। कमजोर होने से कोई भी ठेकेदार उन्हें काम नहीं देगा। लिहाजा, अन्य परिवारों की तरह उनकी भी मौत हो जायेगी।
ये सुनकर युवा अर्नेस्टो चे ग्वेरा की आंखें डबडबा गयी। असल में, शान शौकत में पले अर्नेस्टो ग्वेरा ने गरीबी कभी भी करिबि से नहीं देखि थी। उन्हें ये भी नहीं पता था कि गरीबी किसी कहते हैं। इस घटना ने उनके दिल को झकझौर कर रख दिया। उनकी दुनिया बदल गई और उनका सोचने एवं दुनिया को देखने का नजरिया बदल गया और अब वो सोचने लगे कि दुनिया में गरीब इतने गरीब और अमीर इतने अमीर क्यों होते जा रहे हैं। यात्रा के अन्त में दोनों दोस्त चीली के एयरपोर्ट पर खड़े होते हैं। जहां से उन्हें वापस अपने घर अर्जेटीना जाना था। उड़ान भरने से चे का इरादा तथा उन्होंने वापस लौटने से इंकार कर दिया। उनके साथ गये उनके अभिन्न मित्र अलब्रेटो ने उन्हें काफी समझाने की असफल प्रयास कि वो अपना भविष्य चौपट कर रहा हैं। लेकिन अर्नेस्टो ने अब अपना भविष्य तय कर लिया था। उन्होंने ‘दुनिया के मजदूर एक हो’ (workers of the world unites) का नारा दोहराया और दोस्त को विदा करने के बाद वो सीधे क्यूबा चले गये। वहाँ वे क्यूबा के क्रान्तिकारी फिदेल कास्त्रो के विद्रोह के साथ जुड़ गये। क्यूबा क्रांति में अर्नेस्टो चे ग्वेरा ने एक सफल गुरिल्ला युद्ध की अगुवाई की और क्रांति के बाद क्यूबा के राष्ट्रीय बैंक के अध्यक्ष के साथ ही उद्योग मंत्री बने। उन्होंने फिदेल के साथ क्यूबा में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की पॉलिसी पर काम किया।चे ग्वेरा खुद फिजिशियन थे, लिहाजा, उन्होंने जो नीति बनाई। उनके द्वारा स्थापित स्वास्थ्य नीति आज दुनिया के सामने है। क्यूबा के डॉक्टर आज दुनिया भर में फैले हुऐ हैं और आज क्यूबा दुनिया में सर्वश्रेष्ठ सेवा है । उनका 36 साल की उम्र में संयुक्त राष्ट्र संघ में पूरी दुनिया को क्यूबा में हुई समाजवादी क्रांति की जरूरत पर ऐतिहासिक भाषण उल्लेखनीय है, लेकिन दुनिया को गरिबि से मुक्ति के स्वप्न को लेकर ग्वेरा ने एक दिन लातिनी अमरीका में मजदूर क्रांति का संदेश पहुंचाने के लिये सभी पद छोड़कर जंगलों कि ओर रुख किया। जहाँ उन्होंने बोलिवियन क्रान्ति का नेतृत्व करते हुये अमेरिकी साम्राज्यवादी की खुफिया एजेंसी सीआईए ने उनकी हत्या कर दी।
उनकी जीवनी लिखने वाले जॉन एंडरसन ने एक बार बीबीसी को दिये साक्षात्कार में कहा था कि मैंने चे की तस्वीर को पाकिस्तान में ट्रकों, लॉरियों के पीछे देखा है। जापान में बच्चों के, युवाओं के स्नो बोर्ड पर देखा है। चे ने क्यूबा को सोवियत संघ के करीब ला खड़ा किया। क्यूबा उस रास्तों पर दशकों से चल रहा है। चे ने ही ताकतवर अमरीका के खिलाफ एक दो नहीं, बल्कि कई वियतनाम खड़े कर दिये। चे एक प्रतीक है व्यवस्था के खिलाफ युवाओं के गुस्से का, उसके आदर्शों की लड़ाई का। हमारे भारत में भी उनके लाखों करोड़ो चाहने वाले है ।
अफसोस होता है कि आज का युवा चे ग्वेरा की चित्र वाला टीशर्ट तो पहनता है, लेकिन चे को नहीं जानता। चे को जानना है तो उनकी ट्रेवलॉग ‘मोटरसाइकिल डायरीज’ पढ़नी चहिये। महज 160 पेज की है। वैसे यूट्यूब में मोटरसाइकिल डायरीज पर बनी फिल्म भी मौजूद है। उनकी एक और ‘बोलेवियन डायरमनी लिखी हुई है। चाहें तो उसे भी पढ़ सकते हैं। और हां, che एक स्पेनिश शब्द है, जिसका हिंदी में मतलब होता है ,दिलोदिमाग में छाने वाला :- अनन्त आकाश