देहरादून। उत्तराखण्ड की जनता के लम्बे संघर्ष तथा अनगिनत शहादतों के बाद 9 नवम्बर 2000 को तत्कालीन केन्द्र की बाजपेयी सरकार द्वारा उत्तरान्चल के नाम से अलग राज्य की स्थापना की गई ,तद्दोपरान्त राज्य का नाम उत्तराखण्ड रखा गया । 9 नवम्बर उत्तराखण्ड की जनता के लिये महत्वपूर्ण दिनों में से एक है, जब उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखण्ड राज्य बना। इस दिन राज्य की जनता आन्दोलन के शहीदों को बडे़ सम्मान से याद करती आई है । इस महत्वपूर्ण दिन को इसलिए भी याद किया जाना चाहिए कि जिस उम्मीद को लेकर उत्तराखण्ड की जनता ने अनवरत् संघर्ष तथा आन्दोलनकारियों ने शहादतें दी थी । उम्मीद थी कि राज्य बनने के बाद उनका सही मायनों में अपना शासन होगा तथा जनता के अरमान पूरे होंगे । किन्तु शासकदलों की जनविरोधी तथा कारपोरेटपरस्त तथा विभाजनकारी नीतियों के कारण न केवल उनके अरमान अधूरे रह गये हैं ,बल्कि हमारे राज्य की स्थिति पहले के मुकाबले बद से बदतर हुई है ।अनियोजित विकास ,24 बर्ष में स्थानीय राजधानी गैंरसैण न बनना ,बेरोजगारी की भयावह स्थिति तथा जनअसुविधाओं के परिणामस्वरूप तेजी से बढ़ते पलायन , पहाड़ी जिलों में जनसंख्या की कमी ने विधानसभा सीटों में भारी कटौती हो रही है तथा आबादी के बहुत बड़े हिस्से का पहाड़ की तलहटियों के अलावा देहरादून ,हरिद्वार ,उधमसिंहनगर तथा नैनीताल के तराई क्षेत्र में पलायन हो रहा है तथा मैदानी जिलों पर आबादी का दबाव बढ़ रहा है , भारी बदलाव के परिणामस्वरूप मलिन बस्तियों का तेजी से बिस्तार तथा जंगलों का तेजी से कटान व खेत खलिहान कंक्रीट में बदल गये हैं । आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्रदुषित माहौल में रहने के लिये बिवश है । अनियोजित विकास ने भ्रष्ट राजनेताओं अफसरों ,भूमाफियाओं की गैरकानूनी गतिविधियों को भारी बढ़ावा दिया है ,जो बढ़ते अपराधों का कारण भी है ।
भ्रष्ट राजनीतिज्ञों ,भूमाफियाओं तथा भ्रष्ट अफसरशाही कारपोरेटपरस्त नापाक गठबंधन हमारे राज्य के लिये एक बहुत ही बिकराल समस्या बनी हुई है । ऐसा कोई नेता ,अधिकारी तथा व्यवसायी नहीं जो जमीनों की खरीद फरोख्त तथा सरकारी भूमि पर कब्जे से न जुड़ा हो ,यहाँ तक कि पहाड़ में भी इनका नैक्सस तेजी से सक्रिय है ,जिसे कारपोरेट घरानों का बरदहस्त है । अंकिता जैसे जधन्य हत्याकांड भी इसी का परिणाम है ।आज जिससे निकल पाना अब काफी मुश्किल है, फिलहाल हमें हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखण्ड राज्य के लिये जन आकांक्षाओं के अनुरूप योजनाओं तथा भू कानून बनाने की आवश्यकता है जो भूमि पर अन्धाधुन्ध खरीद फरोख्त तथा कब्जों को रोक सके । आज बिडम्बना यह भी है कि हरेक निर्माण में गुजराती ,हरियाणा तथा दिल्ली बेस कम्पनियां शामिल हैं ,जिनकी स्वयं में कोई साख नहीं है ।
राज्य में केन्द्र द्वारा पोषित आधिकांश योजनाऐं यहाँ की जनता के हितों के अनुरूप नहीं है । राज्य नीति आयोग की राज्य विकास में भूमिका लगभग शून्य है ।भाजपानीत गठबंधन जब से केन्द्र एवं राज्य में डबल इंजन के नाम से सत्तासीन हुई तबसे राज्य सरकार की भूमिका लगभग नगण्य है । राज्य सरकार केवल केन्द्र की हाथों कठपुतली के अलावा कुछ नहीं है। राज्य में जो योजनाओं का आयेदिन ढोल पीटा जा रहा उनमें से अधिकांश कोरपोरटपरस्त हैं ।जिनका लाभ यहाँ की जनता को न होकर अन्तत: कोरपोरेट घरानों व उनके चेहतों को ही होता आया है ।अनियोजित विकास ,अनुभवहीन लोगों द्वारा बनायी गई योजनाओं ने तो हमारे राज्य को तबाह करके रख दिया है ।पिछले कुछ सालों में बड़े लोगों के हितों के लिये अकेले आलवेदर रोड़ ,सड़क चौड़ीकरण ,फ्लाईओवरों ,भीमकाय निर्माण की आढ़ में लाखों – लाख पेड़ ठिकाने लगा दिये गये हैं ,तथा अनापशनाप कटिंगें करवाकर पहाड़़ घाटियों को पेड़ एवं बनस्पति बिहीन कर दिया जा रहा है ,परिणामस्वरूप निरन्तर प्राकृतिक आपदाओं में बृध्दि हो रही है ।
स्मार्ट सिटी के नाम पर देहरादून के परेड ग्राउण्ड एवं अन्य पार्क तथा अन्य बचे खुचे स्थानों को सीमेन्टेड करवाकर जलश्रोतों को ही स्थायी तौर पर खत्म किया जा रहा है ,भबिष्य में भूमिगत जल की कमी से पेयजल समस्या विकराल रूप ले लेगी ।सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के खत्म होने से नीजि वाहनों की बाढ़ ने यातायात व्यवस्था मंहगी तथा ठप्प कर दी है । इसके रोकथाम पुलिस बल या फिर चालान काटने से नहीं हो सकता, इसके बजाय नीजि वाहनों पर अंकुश लगाया जाऐ ,तभी यातायात से लेकर प्रदुषण की समस्या मेंं कमी आऐगी । जनहित में राज्य के मुखिया ,राज्य के नेताओं एवं नौकरशाहों को चाहिये कि अपने वाहनों एवं सुख सुविधाओं तथा अनावश्यक खर्चों में कटौती करें ।मुख्यमंत्री से मन्त्री या नौकरशाह जब अपने पार्टी एवं नीजि कार्यो से जाऐं ,तो खर्च स्वयं वहन करें ।
नेता एवं अफसर चन्द दिनों में धनासेठ कैसे हो जाते हैं ? इनकी सम्पत्तियों को जांच के दायरे में लिया जाना चाहिए । यह भी सुनिश्चित हो राष्ट्रीय नेताओं की इस राज्य में कहाँ -कहाँ सम्पत्ति है ? सबका सही मायनों में खुलासा होना चाहिए ।
आपको मालूम हो कि त्रिपुरा हमारे राज्य जैसा ही छोटा एवं पहाड़ी राज्य है ,जब वहाँ पर माणिक सरकार मुख्यमंत्री थे ,तो वे अपने लिऐ केवल एक ही गाड़ी का उपयोग करते थे । अपने टीनसैड के दो कमरों के मकान में रहते थे ।उनकी पत्नी घरेलु कार्य के लिए रिक्शे का उपयोग करती देखी जा सकती थी । उन दिनों वहाँ के मुख्यसचिव व अन्य आला अधिकारी भी बड़े – बड़े थाम झाम के साथ नहीं रहते थे ।केरल जो सभी मायनों में देश का नम्बर एक राज्य है । वहाँ के नेताओं एवं नौकरशाहों की सादगी उदाहरणीय है ।यहाँ अधिकांश जिलों में जिलाधिकारी पद पर महिला अधिकारी तैनात है ,जो सही मायनों में प्रशासन की संवेदनशीलता को ही दर्शाता है ।हमारे राज्य में आज व पहले भी जिन जिलों में जिलाधिकारी व अन्य मुख्य पदों पर महिलाऐं रही हैं ।वहाँ प्रशासनिक कार्यों से लेकर जन सम्पर्क में ज्यादा संवेदनशीलता तथा पारदर्शिता देखी गयी है ।कुल मिलाकर हमें जरूरत है ,ऐसी सरकार एवं प्रशासनिक ढ़ाचे की जो यहाँ की जनता की भावनाओं एवं आंकाक्षाओं के अनुरूप कार्य कर सके । वर्ना इन 24सालों में विकास के स्थान पर हर गली में कोई न कोई पूर्व मुख्यमन्त्री देखने को मिला ?
1994 में अलग राज्य के आन्दोलन में बडी़ संख्या में आन्दोलनकारियों ने अपनी शहादतें दी ,सिर्फ इसलिए कि उनकी भावी पीढियों को वो वह सब कुछ न देखना पड़े जो सदियों से वे देखते आयें हैं । आज राजनेताओं,लालफीताशाही व माफियाओं के नापाक गठबंधन ने हमारे संसाधनों की खुली लूट खसौट कर जनता के स्वप्न को चकनाचूर किया है । रोजगार ,शिक्षा ,स्वास्थ्य , आदि संसाधनों की लूट पहले के मुकाबले और अधिक तेज हुई है , इस लूट में कारपोरेट जगत एवं राजनेता सीधे तौर पर शामिल हैं । किसी जमाने में शान्तिप्रिय एवं आपसी सदभाव के लिऐ जाना जाने वाला राज्य आज शासकदलों की विभाजनकारी तथा फूटपरस्त नितियों के कारण अशान्ति कि ओर है ।
उत्तराखण्ड की जनता का कुर्बानी*एवं संघर्ष की *पृष्ठभूमि :- हमारे प्रदेश की जनता का संघर्षों एवं कुर्बानियों की परम्परा रही है ,और राष्ट्र के निर्माण में यहाँ के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका उल्लेखनीय है । इसी राज्य से पेशावर विद्रोह के महानायक कामरेड चन्द्र सिंह गढ़वाली ,क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस, सुभाषचंद्र बोस द्वारा आई एन ए की स्थापना में यहाँ के सैनिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। टिहरी राजशाही के खात्मे में कामरेड नागेंद्र सकलानी ,मोलू भरदारी ,श्री देव सुमन शहादत की भूमिका ऐतिहासिक है ।राष्ट्र निर्माण में गोविबल्लभ पन्त ,हेमवतीनंदन बहुगुणा ,कामरेड एम एन राय ,पी सी जोशी ,,राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ,महाबीर त्यागी आदि अनेक नेताओं की भूमिका उल्लेखनीय है । हमारे राज्य में मेहनतकश अवाम को संगठित कर उनको संघर्ष में उतारने में कम्युनिस्टों की उल्लेखनीय योगदान को सदैव याद किया जाऐगा । जुल्म सितम के खिलाफ कम्युनिस्ट हर जगह अगवा रहे हैं । उत्तराखण्ड की महिलाओं द्वारा जल ,जंगल ,जमीन के लिये किये गये ऐतिहासिक संघर्ष अपने में एक मिशाल है । इनमें चिपको आन्दोलन की प्रेणता गौरादेवी ,बीरांगना तिल्लू रौतेली तथा शराब के खिलाफ अनवरत संघर्ष चलाने वाली टिंचरी माई का नाम उल्लेखनीय है । देश की सुरक्षा में यहाँ के जांबाजों की अनगिनत कुर्बानी हमारी समृद्धि एवं गौरवशाली परम्परा का हिस्सा है ,जिसे हमारे देश व दुनिया ने स्वीकारा है । किन्तु आज मोदी सरकार ने सेना में अग्निबीर योजना ने यहाँ के नौजवानों को निराश किया है ।
उत्तराखण्ड अलग राज्य निर्माण ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :-
बर्ष 1994 के खटीमा ,मसूरी गोलीकाण्ड जिसमें दर्जनों आन्दोलनकारियों ने शहादतें दी तथा 2अक्टूबर 094 मुजफ्फरनगर गोलीबारी में शहीद हुऐ आन्दोलनकारियों की शहादत को राज्य की जनता बडे़ सम्मान से याद करती आयी है । इस दिन को लोकतंत्र के इतिहास में काले दिवस के नाम से भी याद किया जाता रहेगा, जब उत्तराखण्ड आन्दोलनकारी राज्य की मांग को लेकर दिल्ली के लालकिला मैदान में होने वाली रैली शामिल होने जा रहे थे । 1अक्टूबर94को सांय7बजे बाद सब लोग बसों से दिल्ली के लिये रवाना हुए जिसमें एस एफ आई तथा सीपीएम के साथी भी शामिल थे । रात्रि में रूड़की के पास भारी पुलिस बल ने रोका काफी जद्दोजहद के बाद जाने दिया, पुनः नारसन हरिद्वार में रोका गया । इस प्रकार प्रशासन द्वारा जगह-जगह बाधाऐं खडी़ की गई । किसी तरह सभी लोग मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहे से पहले पहुंच गये ,किन्तु भारी पुलिस बल की तैनाती के बावजूद आगे बढ़ने का संघर्ष जारी रहा ।पुलिस प्रशासन ने आन्दोलनकारियों के साथ हर तरह से क्रूरता की हदें पार की । आगे बढ़ने की जद्दोजहद,संघर्ष जारी रखा तथा पुलिस गोलबारी में अनेक युवाओं की शहादत तथा अन्य को पुलिस के चंगुल से बचाने के साथ ही पुलिस प्रशासन की तानाशाही का जोरदार जबाव भी दिया गया । कई साथी भी घायल हुऐ, जिन्हें रूड़की अस्पताल में भर्ती किया गया ।इस दौरान अन्य आन्दोलनकारियों के साथ ही माकपा नेता कामरेड सुरेन्द्र सिंह सजवाण की भूमिका सराहनीय रही । जिन्होंने अपनी सूझबूझ का परिचय देकर स्थिति को और अधिक बिगड़ने से रोका ।2 अक्टूबर को ही वापसी के अगले दिन प्रशासन द्वारा कर्फ्यू की घोषणा की गई । इस दौरान ,CPIM के नेता चौधरी ओमप्रकाश के पुत्र दीपक वालिया जोगीवाला पुलिस की गोली के शिकार हुऐ । पूरे उतराखंड में पुलिसिया दमन शुरू हुआ ।
हम लोग पार्टी कार्यालय में ही रहकर तमाम गतिविधियों को संचालित करते रहे ।दमनात्मक कार्यवाही का विरोध करते रहे तथा मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस रंगनाथ मिश्र से बातचीत की तथा उन्हें फैक्स भेजा ,जिस पर उन्होंने उ प्र की मुलायम सरकार को नोटिस जारी किया तब तक आन्दोलन से जुडे़ अनेक सवालों पर राज्य सरकार को नोटिस जारी करवा चुके थे ।मसूरी गोलीकांड का विरोध करते हुऐ हमारे पार्टी के वर्तमान राष्ट्रीय महासचिव कामरेड सीताराम येचुरी एवं सांसदों सहित अनेक पार्टी नेताओं की गिरफ्तारी उल्लेखनीय है ।
आन्दोलन से जुड़े अनेक सवालों को लेकर हमने एस एफ आई के नेतृत्व के साथ केन्द्रीय गृह सचिव पद्मन्नाभैया से भी मुलाकात की । मुजफ्फरनगर में उत्तराखण्ड आन्दोलनकारी महिलाओं के साथ पुलिसकर्मियों के दुर्व्यवहार के सन्दर्भ मे महिला समिति के अखिल भारतीय प्रतिनिधिमण्डल ने राज्य का दौरा किया ,जिसका नेतृत्व कामरेड बृन्दा करात कर रही थी। गोपेश्वर आदि क्षेत्र के पीडि़तों से मिले ।इत्तफाक से सीबीआई टीम भी उसी दिन वहाँ पहुंची । अपनी तथ्यात्मक रिपोर्ट महिला आयोग एवं केन्द्र सरकार को दी , जिसमें पुलिसकर्मियों की ज्यादती का जिक्र था ।
आन्दोलन के तौर तरीके में बुनियादी मतभेद होने के बावजूद हमारी पार्टी हर समय सरकार की दमनात्मक कार्यवाहियों तथा जनता की न्यायोचित मांगों के साथ रही है ।
उत्तराखण्ड राज्य स्थापना के दिवस के अवसर पर उन शहीदों को नमन करते हैं ,जिन्होंने अपने राज्य की जनता के स्वर्णिम भबिष्य की खातिर अपना बलिदान दिया ।