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बस्तियों के सवाल पर नगर आयुक्त को प्रतिनिधिमंडल ने सौंपा ज्ञापन  

देहरादून। आज एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल जिसमें सीपीएम ,आयूपी ,सीटू ,चेतना आन्दोलन तथा भीम आर्मी के प्रतिनिधि शामिल थे ।
प्रतिनिधिमण्डल ने अपने ज्ञापन में कहा है कि हम राजनैतिक एवं सामाजिक संगठन गत दो महीनों से रिस्पना नदी किनारे बसे मज़दूर बस्तियों के सन्दर्भ में आप सहित सभी उचित माध्यमों से सम्पर्क करते रहे हैं । नगर निगम की ओर से मिले सहयोग के लिए हम आभार व्यक्त करते हुये निवेदन करना चाहते हैं कि याचिका में आये आदेशों के तहत कई परिवार बेघर हुऐ।

जनहित में पुन  इस याचिका के सन्दर्भ निम्नलिखित बिंदुओं पर आपसे अपेक्षा रखते हैं कि आप कोर्ट के संज्ञान में यह भी लायें कि :–
(1) यह कि बिना व्यक्तिगत सुनवाई का मौका देकर किसी को बेदखल करना संविधान और कानून के भावनाओं के बिरूध्द है। बावजूद कुछ घरों को तोड़े गए जो कि राज्य सरकार‌ कै 2018 का कानून के अंतर्गत आते थें जिसमें राज्य सरकार का कानून उन्हें अक्टूबर 024 तक अन्य बस्तियों की भांति सुरक्षा देता है ।बावजूद बिजली तथा पानी कै बिल को आधार मानकर ध्वस्तीकरण कि कार्यवाही की गई जो संविधान‌ भावनाओं कै विपरीत है ।

चंद परिवारों को बेघर कगारन्ट नदी और पर्यावरण को कोई लाभ नहीं मिलने वाला है। आश्रय के सवाल पर सरकार नीतिगत फैसला ले चुकी है जिसपर 2016 का अधिनियम द्वारा अमल करने की प्रक्रिया चल रही है।

(2) यह कि बिल्डरों, होटलों और सरकारी विभागों कै द्वारा किया गया अतिक्रमण से पर्यावरण और उनकी ओर से हो रहा प्रदूषण नदी को ज़्यादा नुकसान पंहुचा रहा है।  लोगों को बेघर करने से पहले इन पर कार्यवाही करने की ज्यादा ज़रूरत है।

(3) यह कि किसी भी परिवार को बेघर करने से ख़ास तौर पर महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है , जो उनके संवैधानिक हक़ का उल्लंघन है।  बिना पुनर्वास किसी को बेघर करना उच्चतम न्यायालय के फैसलों का भी कै भी बिरूध्द है (पूर्व में भी इस बिंदु पर आपको कुछ फैसलों की जानकारी से आपको अवगत कराया है उदाहरण के तौर पर Shantistar Builders v. Narayan Khimalal Totame, AIR 1990 SC 630 (1990) )।  इसी अभियान के दौरान एक 25 साल की महिला की जान चली गयी और अनेक बच्चे बेघर हो गए हैं। जनता की सुरक्षा सरकार की सबसे ज्यादा ज़िम्मेदारी है और किसी भी आदेश पर पालन उसी को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए।

हमारा यह भी कहना है कि इस याचिका को लेकर 2023 से 2024 तक रही लापरवाही के लिए जनता ज़िम्मेदार नहीं है। आगे प्रशासन इसको सुनिश्चित करे कि किसी भी प्रकार की लापरवाही ऐसे याचिकाओं को लेकर न हो तथा प्रशासन के पक्ष को भी जनता के हित में रखा राज्य कै 2018 बस्तियों की सुरक्षा कै लिये बने कानून तथा सर्वोच्च न्यायालय कै इस सन्दर्भ में दिये गये दिशा निर्देश कि किसी कि भी बेदखली कानून कै अनुरूप हो ,बैदखलि सै पहले मुआवजे एवं पुनर्वास की गारन्ट सुनिश्चित की जानि चाहिए ।हमनें एनजीटी को इस सन्दर्भ में प्रतिवेदन भेजा है ।

प्रतिनिधिमंडल में आयूपी के अध्यक्ष नवनीत गुंसाई ,सिआईटि यू महामंत्री लेखराज ,सिपिएम देहरादून सचिव अनन्त आकाश ,चेतना आन्दोलन कै राजेन्द्र शाह ,भीम आर्मी के अध्यक्ष आजम खान आदि शामिल थे ।