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1930 का रंवाई का किसान विद्रोह ,जिसने टिहरी राजशाही के बर्बर दमनकारी नीतियों को बेनकाब किया-अनन्त आकाश

पिछली सदी के 20 व 30 वें दशक में जब देश की जनता अंग्रेज़ी हुकूमत के दमनकारी नीतियों के खिलाफ संघर्ष कर रही थी और देशभर में महात्मा गांधी तथा प्रगतिशील ताकतों के नेतृत्व में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार का आदोलन ज़ोरों पर था । गांधी जी के आह्वान पर छात्र स्कूल ,कालेजों का बहिष्कार कर रहे थे। 1928 में साईमन कमीशन के बहिष्कार के दौरान लाला लाजपत राय पर बर्बर लाठीचार्ज के परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु ने आन्दोलन में आग पर घी डालने का कार्य किया ।

क्रान्तिकारियों द्वारा अंग्रेज अफसर सान्डर्स की हत्या की योजना तत्पश्चात अंग्रेजों द्वारा असेम्बली में पेश कानूनों के खिलाफ शहीदे आजम भगतसिंह के नेतृत्व में बम फेंकना व अनेक जुर्मों में शहीदे आजम भगतसिंह ,राजगुरु ,सुखदेव आदि क्रान्तिकारियों की गिरफ्तारी तथा क्रान्तिकारियों के द्वारा अंग्रेजी हुकुमत का डटकर विरोध आदि का असर टिहरी राजशाही के खिलाफ चल रहे आन्दोलन पर भी देखने को मिला ।टिहरी राजशाही के खिलाफ इस दौर में अनेक आन्दोलन हुऐ जिनमें प्रमुख रूप से बेगारी प्रथा , अत्यधिक करों ,जंगल पर हक हकूकों की लड़ाई आदि प्रमुख हैं । 30 मई 1930 का तिलाड़ी विद्रोह भी इसी कडी़ का हिस्सा है । जब तिलाड़ी के मैदान में एकत्रित हुई निहत्थी किसान जनता पर चारों ओर से फायरिंग खोलकर जलियाँवाला बाग नरसंहार की पुनरावृत्ति हुई ।इस प्रकार रंवाई में एकत्रित जनता ने अपने हक हकूकों की रक्षा तथा राजशाही के खिलाफ उनके बलिदान ने एक मिशाल कायम की ,इस गोलीकांड ने राजशाही का असली चेहरा उजागर हुआ ।

तिलाड़ी नरसंहार के बाद राजशाही का दमनचक्र तेज हुआ किन्तु टिहरी राजशाही के खिलाफ संघर्षरत जनता ने हार नही मानी व राजशाही के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखते हुऐ उसे श्री देवसुमन जैसे महत्वपूर्ण सेनानी मिले जिन्होंने अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाते हुऐ अपनी जनता की खातिर असहनीय कष्ट झेले तथा अपना सर्वोच्च बलिदान दिया ।आगे चलकर कामरेड नागेंद्र सकलानी ,मोलू भरदारी की शहादत ने राजशाही की गुलामी से टिहरी की जनता को सदा सदा के लिए मुक्ति दे दी तथा पेशावर विद्रोह के महानायक कामरेड चन्द्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में टिहरी राजशाही का सदा- सदा के लिए अन्त हो गया ।इसप्रकार रंवाई बिद्रोह के लगभग 20 साल बाद टिहरी की जनता को राजशाही की गुलामी से मुक्ति मिली और रवांई की जनता का बलिदान व्यर्थ नहीं गया ।रंवाई बिद्रोह की 95वीं वर्षगांठ पर रंवाई के शहीदों को शत शत नमन ।