Breaking News

विश्व की तीन महान हस्तियों कार्ल मार्क्स ,चार्ल्स डावरिन तथा संत रविदास को सादर नमन – अनन्त आकाश

विश्व की तीन महानतम हस्तियां की जिनमें जर्मनी के मार्क्स ,इंग्लैण्ड के चार्ल्स डारविन तथा भारत के संत रविदास शामिल हैं जिन्होंने समाज को बदलने की एक दिशा दी ।
विपरीत से विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी मार्क्स ने दुनिया को शोषण से मुक्ति का सिध्दान्त दिया तथा दुनिया के मेहनतकशों एक हो का सिद्धान्त दिया जिसके पीछे विश्वभर की करोड़ों मुक्तिकामी जनता एकजुट है ,चार्ल्स डार्विन, कार्ल मार्क्स से 9 साल बड़े थे. डार्विन केंट में रहते थे और मार्क्स लन्दन में. ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज 1859 में प्रकाशित हुई थी और ऐतिहासिक दास कैपिटल का पहला वॉल्यूम 1867 में. 19 दिसम्बर 1860 को मार्क्स ने अपने अनन्य मित्र एंगेल्स को लिखे पत्र में लिखा था कि हमारे विचारों को सामाजिक विज्ञान की पुष्टि करने वाली पुस्तक है, ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज. 16 जनवरी 1861 को फेर्दिनेंद लेसल को लिखे पत्र में भी कार्ल मार्क्स ये उल्लेख करते हैं कि वर्त्तमान समाज भी पृथ्वी पर उपस्थित जीवों की तरह ही परिवर्तन की एक ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है

संत रविदास एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। उनका जन्म 15वीं शताब्दी में वाराणसी में हुआ था। वह एक चमार परिवार से ताल्लुक रखते थे, जो उस समय एक निम्न जाति मानी जाती थी। संत रविदास ने अपने जीवनकाल में कई भक्ति गीत और कविताएँ लिखीं, जो आज भी पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाओं में उन्होंने भगवान की भक्ति और मानवता की एकता का संदेश दिया है।

संत रविदास का मानना था कि भगवान सभी जीवों में व्याप्त हैं और किसी भी जाति या वर्ग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने समाज में व्याप्त जाति प्रथा और असमानता के खिलाफ आवाज उठाई।संत रविदास की शिक्षाएँ और रचनाएँ आज भी पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं और उन्हें एक महान संत और समाज सुधारक के रूप में याद किया जाता है।

मार्क्स ,एंगेल्स ,जैनी :- इतिहास में मित्रता के असंख्य उदाहरण हो सकते हैं किन्तु उनमें से जीवन साथी तथा मित्रों के ऐसे कम ही उदाहरण हैं ,जब किसी जीवन स़ंगिनी तथा मित्र ने बिना उफ किये ही ऐसी मित्रता निभाई हो जिसनें , दुनिया को बदलने का वैज्ञानिक सिध्दांत दिया हो !

जैनी ,मार्क्स एवम् एंगेल्स का मित्रता का ऐसा ही बेहद प्रेरणादायक एवं अनूठा उदाहरण हमारे सामने है , जिसने हमें सर्वोच्च बलिदान के साथ ही समाज के प्रति अपनी जवाबदेही का रास्ता दिखाया है ।

विश्व में साम्यवाद के जन्मदाता कार्ल मार्क्स जब दुनिया के लिए “दास कैपिटल ” लिखने में तल्लीन थे ,तब उन्हें अपना एवं परिवार का निर्वहन करना काफी मुश्किल हो गया था ।उन दिनों उनकी मकान मालकिन ने उनका सामान भी बाहर फिंकवाया तथा उनमें से प्रयोग में आने वाले सामान की नीलामी करवाई ,मार्क्स और उनका परिवार खुले आसमान के नीचे था । ऐसी विकट परिस्थितियों में भी उनकी पत्नी निराश नहीं हुई । उन्होंने पुराने कपड़ों की मरम्मत कर लन्दन की गली – गलियों में घूमकर जाकर वे कपड़े बेचे । उनकी पत्नी की इस प्रतिबध्दता के परिणामस्वरूप ही विश्व को “दास कैपिटल” जैसा ग्रन्थ तथा मार्क्स जैसा दार्शनिक मिला ।विश्व के महान दार्शनिक और राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रणेता कार्ल मार्क्स जीवनोपर्यंत अभावों में रहे ,इसके कारण उनके कई बच्चों की असमय मृत्यु हुई ।जैनी मार्क्स जो पर्सिया राजघराने की थी ने अपनी शानो शौकत को त्यागकर मार्क्स को अपना जीवनसाथी चुना । अपने पति मार्क्स के आदर्शों एवं युगांतकारी प्रयासों की सफलता के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया । जर्मनी से निर्वासित होने के बाद मार्क्स लन्दन चले आये, न जाने उन्होंने ,जैनी तथा बच्चों ने क्या -क्या कष्ट नहीं झेले ,वर्णन करना काफी कष्टकारी एवं मुश्किल है ।

मार्क्स ने अपने जमाने में अनेक घटनाओं को बहुत ही करीबी से देखा तथा समाज को बदलने के स्वप्न को साकार करने के लिए दिन रात एक किया । विद्रोही लेखन से समाज की रूढिवादी परम्पराओं के खिलाफ संघर्ष के चलते तत्कालीन सत्ताधारियों तथा पोंगापंथी समाज को मार्क्स रास नहीं आ रहे थे, इसलिए उनका कई – कई बार अनेक देशों से निकाला होता रहा । ये सारी घटनाएं भी उनके इरादों में बाधक नहीं बन पायी ।

5 मई 1818 को ट्रिवीज परसा में यहूदी परिवार में जन्मे मार्क्स के प्रगतिशील विचारों के पिता पेशे से वकील थे । पिता की मृत्यु के समय मार्क्स कम उम्र के थे । मार्क्स की शादी आस्ट्रिया के राज परिवार के मन्त्री की बेटी जैनी से हुई थी जो कि शानोशौकत में पली थी,जैनी मार्क्स की प्रतिभा से प्रभावित थी तथा उनको दिलोजान से चाहती थी । भारी कष्टों एवं अभावों के बावजूद मरते दम तक उसने मार्क्स का साथ नहीं छोड़ा । मार्क्स भी अपनी पत्नी को उतना ही प्यार करते थे । वे एक दूसरे के आजीवन पूरक रहे ।
जैनी ने मार्क्स को आगे बढा़ने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया । इतिहास में ऐसे कम ही उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने बेहतर दुनिया के निर्माण के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगाया । जैनी की मृत्यु पर मार्क्स बेहद दुखी थे तथा अपने को अकेला महसूस करने लगे ,लन्दन निर्वासन के दौरान जैनी के बाद एक वैचारिक मित्र के रूप में फैडरिक एंगेल्स जो कुलीन परिवार के साथ ही एक उद्योगपति परिवार के भी थे । वे मार्क्स की हरसंभव सहायता करते थे ,उन्होंने इंसानियत के लिए हो रहे ऐतिहासिक कार्य को मार्क्स के मृत्योपरान्त भी आगे बढ़ाकर मित्रता का फर्ज बखूबी निभाया ।_

मार्क्स ने अपने जीवित रहते ही समाज के लिए अभूतपूर्व कार्य कर डाला ,शायद किसी दार्शनिक ने आज तक ऐसा किया हो । मार्क्स से पहले तो दार्शनिकों ने केवल दुनिया की व्याख्या की किन्तु मार्क्स ने दुनिया को बदलने का रास्ता बताया । मार्क्स ने दुनिया में शोषण से मुक्ति के लिए दुनियाभर के मजदूरो एक हो का नारा देकर उन्हें शोषण से मुक्ति का सूत्र दिया । दुनिया में शोषक तथा शोषितों के मध्य एक स्पष्ट लकीर खींचकर शोषितों के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया कि उनकी असली लड़ाई किनके खिलाफ है ?

साथियो , ऐसे गुमनाम सितारों से भरी हुई हमारी दुनिया है ।इतिहास गवाह है ,हर कामयाब पुरुष के पीछे उसकी पत्नी की भूमिका रही है, जैनी की महानता एवं बलिदान की पराकाष्ठा इस तथ्य की पुष्टि करती है । साथियो, यह जोड़ी आज भी हमारे मनोमस्तिष्क में है ,और आने वाली कई सदियों तक हमारे समाज का मार्गदर्शन करती रहेगी ।