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नागर शैली का वास्तुशिल्पी- दरबान सिंह

कार्य कोई भी हो। यदि ! आप में हुनर है और आप उस कार्य को पूर्ण लगन,मेहनत और समर्पण से करते हैं, तो निश्चित है कि, समय के साथ आपके हुनर में निखार तो आयेगा ही साथ ही सफलता के साथ आप उस कार्य में अपने कौशल से विशेषज्ञता और दक्षता भी प्राप्त कर लेंगे।

इसे सही साबित किया है चमोली जिले के टंगसा गांव निवासी दरबान सिंह राणा नें जो आज मंदिर निर्माण की नागर शैली के विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं।

गोपेश्वर में रहकर विगत तीन दशकों से राजमिस्त्री का कार्य कर रहे दरबान सिंह ने बिना किसी प्रशिक्षण के सिर्फ अपने हुनर और कौशल के दम पर आज मंदिर निर्माण (खासकर नागर शैली के) के क्षेत्र में एक कुशल कारीगर के रूप में अपनी अलग पहचान बनायी हैं।

उत्तराखंड में मंदिर वास्तुकला की बात करें तो जहाँ एक ओर लगभग सभी प्रमुख मंदिर नागर शैली में हैं, वही गांवो मे स्थित लोक देवों-भूमियाल, क्षेत्रपाल और ईष्टों के मंदिर साधारण शैली में ही निर्मित हुए देखे जा सकते हैं।

उत्तराखंड के लोकधर्म में असीम श्रद्धा और विश्वास के केंद्र इन लोक देवों के देवालयों को भी, अब दरबान सिंह जैसे वास्तुशिल्पी के मिलने से एक नयी भव्यता मिल रही है जो वर्तमान दौर में अभी तक कुशल शिल्पी के अभाव में नहीं मिल पायी थी।

अभी तक नागर शैली में 29 मंदिरों का निर्माण कर चुके भाई दरबान सिंह बताते हैं कि, उन्होंने 1992 में सर्वप्रथम अनुसूया देवी में भगवान दत्त (दत्तात्रेय) के मंदिर के निर्माण से इस क्षेत्र में एक छोटा सा कदम रखा था, जो अब मां अनुसूया,भगवान दत्तात्रेय और गोपीनाथ जी की कृपा से फलीभूत हो रहा है।

तब से लेकर अभी तक उनके द्वारा बनाये मंदिरों में मण्डल गाँव में माता अनुसूया का मंदिर, लासी जाख मंदिर, गैरसैंण के पज्याणा गाँव में देवी का मंदिर इनके कौशल के अद्भुत नमूने हैं। इसके साथ ही इन्होंने आस-पास तथा क्षेत्र के कई अन्य गाँवों में शिव,जाख, भैरव तथा देवी के मंदिरों को भी अपने वास्तु कौशल से नयी भव्यता प्रदान की हैं।

नागर शैली के निर्माण-विधि व उसका प्रारूप सीखने के विषय में दरबान सिंह बताते हैं अनुसूया में दत्तात्रेय मंदिर के निर्माण से पूर्व उनके पास मंदिर निर्माण का कोई अनुभव नही था।

गोपेश्वर में रहने और पेशे से राजमिस्त्री होने से वो रोज गोपीनाथ मंदिर के प्रारूप, सरंचना और शैली की बारीकियों पर गौर करते और मंदिर निर्माण के दौरान उसी के अनुरूप निर्माण करने का प्रयास करते रहते थे। इस प्रकार धीरे-धीरे उनके कौशल और काम में भी निखार आता गया।

बताते हैं कि मंदिर के शिखर और छत निर्माण के तक वह पूरे विधि-विधान और अनुष्ठान के साथ तीन व्रतों का पालन करते हैं। मंदिर की नीव निर्माण तक चेहरे की दाड़ी भी नही बनाते हैंहैं और साथ में कार्य कर रहे अन्य सहायक भी पूरे निर्माण कार्य के दौरान निरामिष रहते हैं और हर रोज स्नान करने के बाद ही निर्माण क्षेत्र में प्रवेश करते हैं।

मंदिर निर्माण सामग्री के बारे में बताते हैं कि कटुआ पत्थरो तथा पठाल(स्लेट) की अन-उपलब्धता तथा ज्यादा खर्चीला होने के कारण ईट और सरिया का ही प्रयोग किया है। पर इससे पुराने कटुआ पत्थरों से निर्मित मंदिरों की तुलना में भव्यता और सुंदरता में ज्यादा अंतर नहीं आता है।

उनके द्वारा बनाये गये मंदिरों के आकार के बारे में बताते हुए कहते हैं कि अभी तक उनके द्वारा बनाये गये अधिकतर मंदिरों के गर्भ गृह का आधार 12×12, तथा शिखर 7×7 फीट तथा सभा मंडप 7×4 है।

यदि आप भी अपने देवालय को भव्य स्वरूप प्रदान करना चाहते है तो निम्न मो.नं. पर दरबान सिंह जी से संपर्क कर सकते हैं।
8864974765