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मैक्सिकन राष्ट्रपति क्लाउडिया चेनबाम का अमरीकियों को संबोधन- अनन्त आकाश

( ” नोट करने वाली बात है कि हमारे देश की सत्ता सहित विश्व के कुछ राष्ट्रों को छोड़कर ,अमेरिका के इर्दगिर्द के दर्जनों राष्ट्रों सहित विश्व के अधिकांश राष्ट्र अमेरिकी दादागिरी के खिलाफ हैं”

इस देश के शासकों की हरकतों का संक्षिप्त विवरण :- वैसे तो पराजीवी अमरीकन साम्राज्यवादी नीतियों के चलते दुनिया में युद्ध तथा अमानवीय कार्यवाहियों की लम्बी फेहरिस्त है ,दुनिया का कोई कोना नहीं जहाँ अमेरिका ने अपने साम्राज्यवादी नीतियों तथा अपने हथियारों के खैपों को ठिकाने लगाने के लिऐ ‌विश्व के अनेकानेक राष्ट्रों पर युद्ध न थोपा हो ,यह युध्द कभी प्रत्यक्ष तथा कभी अप्रत्यक्ष रहा है ,भारत में कश्मीर एवं पूर्वोत्तर में अस्थिरता भी इसी नीति का हिस्सा रहा है ,हमारे पड़ोसी देश बांगलादेश में चल रही घटनाओं को आगे बढांने में अमेरिकी फण्डिंग का हिस्सा है जिसे हमारे देशी की सत्ता में काबिज लोग साम्प्रदायिक धुव्रीकरण कर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने के लिए कर रहे हैं ,उन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं है इन घटनाओं की बलि कौन चढ़ रहा है ,इस प्रकार अमेरिकन नीतियां विश्वभर में विभाजन एवं अस्थिरता को बचाव देकर अपने हितों को साद रही हैं ,अमेरिकन नीतियों के साथ रहा वह अन्तर: तबाह हुआ ।

यह गौर करना जरूरी है कि अमेरिकी के हितों के साथ दुनियाभर के कट्टपंथी चाहे वह इस्लामिक हों या ईसाई या फिर हमारे देश हिन्दुत्वादी कट्टपंथी वे सदैव अमेरिका की नीतियों के साथ खडे़ रहे हैं,अफगानिस्तान में 20 साल अमेरिकन योध्दोनुमाद ,इससे पहले खुशहाल इराक की तबाही ,खुशहाल सीरिया को तबाह कर वहां के लोकप्रिय राष्ट्र पति असद को बेदखल करना ,समाजवादी देश क्यूबा के खिलाफ अमेरिकीयों द्वारा पिछले 60 से से तख्तापलट की नापाक कोशिश ,बियतनाम में 20 साल तक वहां की जनता पर अधोषित युद्ध थोपना ,जापान। पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान परमाणु बमों से हमला कर लाखों आबादी को मृत्यु के आगोश में भेजना ,चीन ,रूस ,उत्तरी कोरिया के खिलाफ निरन्तर पढ़यन्त्र कारी कोशिश जैसी धृणित कार्यवाही की लम्बी फैहरिहस्त हैं ।पिछले एक साल से

इजराइल के साथ मिलाकर फिलिस्तीन गाजा पट्टी में सामूहिक नरसंहार की धृणित कार्यवाही में लिप्त रहना अमेरिकन साम्राज्यवादियों एवं उनके जूनियर पार्टनरों के घृणित चेहरे को बेनकाब करता है । इनके ईरान ,लीबिया आदि देशों के खिलाफ निरन्तर तख्तापलट की नाकाप कोशिश करने जैसे अनगिनत मामले शामिल हैं ।हालिया चुनाव में हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदीजी के परममित्र घोर दक्षिणपंथी ट्रम्प का राष्ट्र पति बनने के बाद लगातार लाखों प्रवासी लोगों को अमेरिका छोड़ने की चेतावनी के बाद बड़ी संख्या में भारतीय स्वदेश लौंटे हैं । भारतीयों को सबक सिखाने कीई सोची समझी नीति के तहत कुछ भारतीय नागरिकों को हथकड़ियों ,बेड़ियों में जकड़कर अमृतसर एअरपोर्ट पर छोड़ना मानवीय इतिहास के शर्मसार करने वाले करतूतों में शामिल है। ।उस पर पीएम मोदी की चुप्पी बेहद अफसोसजनक एवं गैर जिम्मेदाराना है ,बेड़ियों में बन्दे लोगों में 13 से अधिक पीएम मोदी के गृह राज्य के हैं जो कि गुजरात मॉडल का एक नमूना है जहाँ आमजन रोजगार के लिऐ तरस रहा तथा बड़े ‌बडे कोरपेरेट घराने अडाणी ,अम्बानी न केवल गुजरात बल्कि पूरे देश को लूटने में लगे हैं ,जहाँ के कई लूटेरे देश के अरबों खरबों रूपये लेकर विदेश भाग गये जो कभी वर्तमान सरकार के हि संरक्षण में पलकर इस हद तक पहुँच कर फरार हुऐ ।

मानवाधिकार का सर्वाधिक पैरोकार बनने का दावा करने वाला अमेरिकन साम्राज्यवादी देश उसके सहयोगी तथा अपने निहित स्वार्थ के लिऐ चुपचाप रहने वाले लोग ये समझ लें कि आज आप लोग जिन लोगों को अवैध घुसपैठिया कहकर अमेरिका कि गर्त में जा रही अर्थव्यवस्था को नजरअन्दाज कर रहे हो, निकट भविष्य में अमेरिका में रोजगार कर रहे प्रवासी बेटा,बेटियों के साथ भी हो सकती है ।आज अमेरिकन साम्राज्यवादी युद्धोनुमाद एवं लूटखसोट कि नीतियों के परिणामस्वरूप वहां की सामाजिक एवं अर्थव्यवस्था लगभग चरमरा गई जो निकट भविष्य में अमेरिका कि जनता तथा वहां रह रहे प्रवासियो को झेलनी पड़ेगी ।इसलिये वर्तमान शासक चाहे वो अमेरिका के हों या हमारे देश का मुख्य समस्याओं से ज्यादा दिन तक मुंह नहीं मोड़ सकता है )इस सन्दर्भ मेअमेरिका से लगे विश्व के महत्तपूर्ण राष्ट्रों में एक मैक्सिको के राष्ट्रपति अमेरिकियों को सम्बोधित कर रहे हैं :-

« तो, आपने दीवार बनाने लिए वोट दिया… खैर, प्यारे अमेरिकियों, भले ही आपको भूगोल के बारे में ज़्यादा जानकारी न हो, क्योंकि अमेरिका आपके लिए आपका देश है, महाद्वीप नहीं, इसलिए यह ज़रूरी है कि आप पहली ईंट रखे जाने से पहले ही पता लगा लें कि उस दीवार के पार विश्व कि 7 अरब लोग हैं।
लेकिन चूंकि आप वास्तव में “लोग” शब्द नहीं जानते, इसलिए हम उन्हें “उपभोक्ता” कहेंगे। 7 अरब उपभोक्ता 42 घंटे से भी कम समय में अपने i Phone को सैमसंग या हुआवेई डिवाइस से बदलने के लिए तैयार हैं।
वे लेवी की जगह ज़ारा या मासिमो डूटी भी ले सकते हैं।
छह महीने से भी कम समय में, हम आसानी से फ़ोर्ड या शेवरले की कारें खरीदना बन्द कर सकते हैं और उनकी जगह टोयोटा, किआ, माज़दा, होंडा, हुंडई, वोल्वो, सुबारू, रेनॉल्ट या बीएमडब्ल्यू ले सकते हैं, जो तकनीकी रूप से अमेरिका द्वारा उत्पादित कारों से बेहतर हैं।

वे 7 बिलियन लोग डायरेक्ट टी वी की सदस्यता लेना भी बन्द कर सकते हैं, और हम ऐसा नहीं करना चाहते हैं, लेकिन हम हॉलीवुड की फिल्में देखना बन्द कर सकते हैं और अधिक लैटिन अमेरिकी या यूरोपीय प्रोडक्शन देखना शुरू कर सकते हैं, जिनमें बेहतर गुणवत्ता, सन्देश, सिनेमाई तकनीक और सामग्री है।
हालांकि यह अविश्वसनीय लग सकता है, हम डिज्नी को छोड़ सकते हैं और कैनकन, मैक्सिको, कनाडा या यूरोप में एक्सकेरेट रिसॉर्ट जा सकते हैं।दक्षिण, पूर्वी अमेरिका और यूरोप में अन्य बेहतरीन गंतव्य हैं।

और भले ही आपको विश्वास न हो, मैक्सिको में भी मैकडॉनल्ड्स से बेहतर बर्गर हैं और उनमें बेहतर पोषण सामग्री है।
क्या किसी ने अमेरिका में पिरामिड देखे हैं? मिस्र, मैक्सिको, पेरू, ग्वाटेमाला, सूडान और अन्य देशों में अविश्वसनीय संस्कृतियों वाले पिरामिड हैं।
जानें कि प्राचीन और आधुनिक दुनिया के अजूबे कहाँ हैं… उनमें से कोई भी अमेरिका में नहीं है… ट्रम्प पर शर्म आती है, उन्होंने इसे खरीदा और बेचा होगा!
हम जानते हैं कि एडिडास मौजूद है, न कि केवल नाइकी और हम पैनम जैसे मैक्सिकन टेनिस जूते पहनना शुरू कर सकते हैं। हम जितना सोचते हैं, उससे कहीं ज़्यादा जानते हैं।

उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि अगर ये 7 बिलियन उपभोक्ता उनके उत्पाद नहीं खरीदते हैं, तो बेरोजगारी होगी और उनकी अर्थव्यवस्था (नस्लवादी दीवार के भीतर) इतनी ढ़ह जाएगी कि वे हमसे इस बदसूरत दीवार को तोड़ने की भीख मांगेंगे।
हम ऐसा नहीं चाहते थे लेकिन.. आप दीवार चाहते हैं, आपको दीवार मिलती है। ईमानदारी से आभार के साथ। »
( अमेरिकियों से वर्तमान अमेरिकन राष्ट्रपति ने दीवार लगाने के नाम से वोट मागे)
साभार हबीब खान की वाल से

तानाशाह अमेरिका अन्दर से डरपोक एवं कायर होता है ,जब मनमोहन सिंह के आगे अमेरिका ने घुटने टेके थे
हमारी विदेश सेवा की 1999 बैच की एक राजनयिक देवयानी खोब्रागड़े अमेरिका में अपनी घरेलू सहायिका को वहाँ के कानूनों के हिसाब से वेतन न देने के मामले में फँस गई थीं।
उनकी सहायिका भी भारतीय नागरिक ही थी।
केस दर्ज हुआ; देवयानी को वीजा धोखाधड़ी और घरेलू नौकरानी का आर्थिक शोषण करने के आरोप में 12 दिसंबर, 2013 को सार्वजनिक रूप से हथकड़ी लगाते हुए न्यूयार्क पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया।

भारत में मनमोहन सिंह की सरकार थी। उन्होंने मामला सुलझाने के लिए पहले तो कूटनीतिक स्तर पर बातचीत की लेकिन अमेरिकी अधिकारी नहीं माने। वे बोले कि देवयानी को आरोपों का सामना करना होगा। हम इनको अभी नहीं भेज सकते। राजनयिकों को इन चीजों से इम्युनिटी है पर डेपोर्टेशन एकदम से नहीं हो जाता। प्रक्रिया के नाम पर लोगों को उनके दूतावास में ही रोके रखा जा सकता है। वही किया गया था।
डॉक्टर सिंह ने तुरंत अपनी कार्रवाई शुरू कर दी और दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के बाहर लगी सुरक्षा बाड़ को कमजोर कर दिया। किसी हमले से बचाव के लिए लगाए गए सीमेंट-कंक्रीट के बड़े-बड़े बोल्डरों को बुलडोजर से हटवा दिया गया।
भारत ने अमेरिकी दूतावास के लिए भेजे जाने वाले खाने-पीने की वस्तुएं, शराब आदि सब चीज़ों के क्लियरेंस रोक दिए। साथ ही सरकार ने सारे डिप्लोमैटिक स्टाफ के एयरपोर्ट पास भी वापस ले लिये। अमेरिकी कॉन्स्युलेट्स में कार्यरत भारतीय स्टाफ को दिये जाने वाले वेतन का विवरण भी मँगाया गया। दूतावास के बाहर बड़ी संख्या में सदैव तैनात रहने वाले दिल्ली पुलिस के जवान भी हटा लिये गये।

मीडिया ने इसको बड़े पैमाने पर रिपोर्ट करना शुरू किया और फिर जानते हैं क्या हुआ? देवयानी को अमेरिकी सरकार द्वारा सम्मानपूर्वक वापस भारत भेज दिया गया।
बाद में देवयानी की गिरफ्तारी और उनके साथ की गई बदसलूकी मामले पर तनाव बढ़ने के बाद अमेरिका ने खेद जताया। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन को फोन कर देवयानी मामले पर खेद प्रकट किया।
मितरों, ईंट का जवाब पत्थर से देने के लिए कलेजे का मजबूत होना जरूरी होता है लेकिन कोई नपुंसक ऐसा सोच भी नहीं सकता।
(साभार बरिष् पत्रकार श्याम सिंह रावत जी की वआल सै‌ )_