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प्रभावितों की समस्या को लेकर नगर आयुक्त से भेंट 

30 को राज्य सचिवालय पर प्रदर्शन 

देहरादून। एनजीटी के आदेश पर मलिन बस्तियों को तोड़ने की कार्यवाही के खिलाफ ,बस्तियों के नियमितीकरण की मांग को लेकर आज विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधिमण्डल ने नगर आयुक्त से भेंटकर बस्तियों तोड़फोड रोकने की मांग की है तथा कहा है कि आपके आश्वासन के बावजूद प्रभावित क्षेत्रों में अतिक्रमण हटाने के नाम पर फील्ड कर्मचारियों मापदण्डों की अनदेखी मनमानी की जा रही है । इस बीच इसी सन्दर्भ में सचिवालय में आयोजित प्रदर्शन के लिऐ संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा जगह – जगह सम्पर्क कर सभी प्रभावितों एवं मलिन बस्तियोंवासियों से 11 बजे तक अधिक से अधिक संख्या में गांधीपार्क पहुंचने की अपील की है।

प्रमुख मांगे
(1)अतिक्रमण अभियान से जुड़े अधिकारियों एवं कर्मचारियों को निर्देशित किया जाऐ कि किसी भी साक्ष्य या दस्तावेज को वे लें और अगर कोई भी साक्ष्य है जिससे पता चलता है कि लोग 2016 से पहले बसे हैं तो प्रभावित परिवार का नाम अतिक्रमण की सूची सूची से हटाये जाये ।

(2) किसी को भी बेदखल करने से पहले कानूनी – प्रक्रिया को पूरा करें।साक्ष्य पेश करने के लिऐ कम से कम 30 दिन का समय दिया जाऐ ,हर व्यक्ति को सुना जाऐ ।

(3)बेदखल करने से पहले कानून और उच्चतम न्यायालय के फैसलों के अनुसार नियमितीकरण और पुनर्वास के लिऐ कदम उठाये जायें ।

(4)कार्यवाही पूरी तरह से निष्पक्ष हो और बेदखली की कार्यवाही बड़े इमारतों एवं प्रतिष्ठानों से शुरू करें ।

(5)जबकि 2016 से पहले बसे लोगों की सम्पति को क़ानूनी सुरक्षा मिला है,लोगों के साक्ष्यों पर मनमानी आपत्तियां की जा रही हैं। मात्र बिजली और पानी के बिलों को ही मान्यता दी जा रही है जबकि कई लोग हैं जो पहले बसे थे, लेकिन बिजली और पानी का कनेक्शन बाद में लगवा पाए हैं उनके पास राशनकार्ड/गैस/डीएल/एलआईसी/जन्म प्रमाण/टैक्स/आधार/वोटर कार्ड आदि सबूत मौजूद हैं । इसके अतिरिक्त कुछ बिजली और पानी के बिलों पर भी नाजायज आपत्ति लगायी जा रही है । अपना साक्ष्य पेश करने के लिऐ प्रभावितों को मात्र दो से छह दिन तक का समय दिया गया है । MDDA की ओर से जारी किया गये नोटिसों में 22 तारीख अंकित है जबकि हकीकत में 22 तारीख को अधिकांश लोगों के पास यह नोटिस पहुंचा हि नहीं । यहां तक कि कुछ लोगों को 27 और 28 को ही नोटिस मिला है। नगर निगम की ओर से दिए गए नोटिसों के साथ भी ऐसे ही हुआ और उन नोटिसों में साक्ष्य पेश करने के बारे में ज़िक्र ही नहीं है। ये गरीब परिवार हैं, जो दैनिक दिहाड़ी से कमाते हैं, उन्हें इस तरह से कम समय देकर परेशान करना न्यायोचित कदम नहीं है ।

(6) यह बेदखली की प्रक्रिया कौन से क़ानूनी प्रावधान के तहत किया जा रहा है, इसका ज़िक्र कहीं नहीं है, बेदखली के लिए क़ानूनी प्रक्रिया स्पष्ट है जिसमें सुनवाई के लिए दस दिन दिया जाता है और बेदखली का आदेश होने के बाद तीस दिन स्वयं हटाने के लिए समय दिया जाता है।

(7)उच्चतम न्यायालय के अनेक फैसलों के अनुसार बिना पुनर्वास का व्यवस्था कर किसी को बेघर करना संविधान के खिलाफ है। लेकिन इस अभियान के दौरान ऐसा कोई व्यवस्था नहीं दिखाई दे रही है । राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के आदेश का उलंघन करते हुए सिर्फ और सिर्फ मज़दूर बस्तियों पर कार्यवाही की जा रही है। बिल्डरों, होटलों और सरकारी विभाग द्वारा बनाये गए अतिक्रमण पर कोई भी कार्यवाही नहीं हो रही है ।

(8)इस अभियान को चलाने के लिए एक सप्ताह के अंदर रिस्पना नदी के किनारे बसे हुए बस्तियों का सर्वेक्षण किया गया था। लेकिन 2016 के मलिन बस्ती अधिनियम के अंतर्गत बनाई गयी नियमावली के तहत नगर निगम की ज़िम्मेदारी थी कि वे नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए भी सर्वेक्षण करते, जो अधिकांश बस्तियों में आठ साल में नहीं हुआ ।

आयुक्त महोदय से मिलने वालों में शंकर गोपाल चेतना आन्दोलन ,राजेन्द्र पुरोहित ,अनन्त आकाश सीपीआई(एम) ,लेखराज सीटू ,विनोद बडोनी आदि शामिल थे ।
नगर आयुक्त को दिया गया |
जारीकर्ता
(लेखराज)
जिला महामंत्री सीटू