संजय किमोठी
दोस्तो कल 9मार्च का दिन फिर हमारे सूबे के लिए एक बुरे दिन मै शामिल हुआ, उत्तराखँड राज्य अपनै निर्माण के दिनों से ही अपनै अच्छे दिनों के लिए तरस रहा है!
पिछले कयी दिनों से चला आ रहा ये घटनाक्रम त्रिवेन्द्र रावत के इस्तीफे पर जाकर थमा,कुछ को सुकून मिला तो कुछ लोग बेचैन होंगे!
खैर राजनीति है, यहाँ जायज और नाजायज जैसे शब्दों के मायनै नहीं, सिर्फ एक शब्द मात्र होता है!
पिछलै 4 सालों से राज्य एक अजीबो गरीब दिशा की ओर हाँका जा रहा था जिसके रास्ते में पडा़व नहीं सिर्फ तूफाँन ही थे,और इनमै जनता उड़ रही थी,बेहाल हो रही थी ,गैरसैण में माँ,बहनों ,भाईयों पर लाठीचार्ज,ऐसा लग रहा था!
राजशाही,नादिरशाही,का दौर फिर लौट के आ गया,त्रिवेन्द्र सरकार तो कोरोनाकाल के कारण इतनै समय तक सत्ता मैं बैठ गयी नही तो ये घडी़ शायद पहले आ जाती!
सरकार हर बार जीरो टालरैंस शब्द का इस्तेमाल करती थी जो इनका महज तकिया कलाम था,सफलता और असफलता के लिए हमेसा कोई न कोई कारण जिम्मेदार होता है।
ये गर मै गिनाना चाहूं तो इस लेखन मै जगह भर जायेगी,फिर भी कुछ कारण जरूर लिखना चाहूँगा,शिक्षिका उत्तरा बहुगुणा का सरेआम अपमान,समूची मातृ शक्ति का अपमान था,आप समझो चाहे न समझो वो महज फरियाद लेकर आई थी!
गैरसैण राजधानी राज्य निर्माण से पूर्व राज्य की राजधानी तय थी उसको कभी शीत कभी ग्रीष्म ऋतुवों की तरह शब्दों से नवाजा गया,और बाद मै कमिश्रनरी की घोषणा कर तुगलकी फरमान जारी कर दिया!
चार धाम यात्राओं में बद्री केदार मँन्दिर समिति को भँग कर दिया जिसमै हक हकूक धारी आदिकाल से ही एक ब्यवस्था रूपी कानून मै बाँन्धे गये थे,और स्थानीय लोगों का यहाँ पर अपना अपना नियत स्थान था,जगदगुरू शँकराचार्य जी ने हक हकूक धारियों को विश्वास में लेकर एक ठोस प्रन्धन ब्यवस्था बनायी थी,जो बाद मै मँन्दिरसमिति एक रुप में बनायी गयी आपनै इस ब्यवस्था को भँग कर,लालाओं के हवाले करनै और प्रजाताँन्त्रिक ब्यवस्था के बडे़ अफसर आई,ए एस,को मोहरा बनाकर एक कुटिल चाल चली जो आपकी कुँठित माँशिकता को प्रकट करती थी,जिसे देवस्थानम बोर्ड,का नाम दे दिया,और भगवान के चढा़वै पर भी नजरैं गडा़यी अँबानी पुत्र को साथ लेकर,येभी एक कारण बना!
कोटद्वार को जिला बनाने की माँग वर्षों से चली आ रही है जिसका नाम बदलना महज माँशिक दिवालियापन कहा जायेगा,ये कैसे फैसले हैं जिनका जनता को कहीं से कोई लाभ नहीं,बेरोजगारों को कदम कदम पर आपकी सरकार छलती रही!
कभी108कर्मी बाहर तो कभी उपनल कर्मी बाहर,आउटसोर्सिंग के दलाल जगह जगह बैठाये आपकी सरकार नै जो फैसले लिए आत्मघाती फैसले थे।
सरकारी सेवाओं में नियमितीकरण नहीं हुआ,पहले की भाँति परमानैन्ट नौकरियों का तो अकाल पड़ गया प्रदेश में,खैर जाते जाते आपनै दल की सेवा मैं रहनै के लिए दल को आश्वस्त किया पर वहाँ भी कयी किन्तु परन्तु और लेकिन सवाल छोड़ गये!
महोदय
मेरे इस लेखन से आपके बहुत चाहनै वालों को ठेस पहुँचैगी जिसके लिए क्षमा परन्तु पत्रकारों का उत्पीड़न और मुकद्दमेबाजी का अध्याय भी याद किया जायेगा,आपको हमारा सादर प्रणाम भूत पूर्व मुख्यमँत्री जी आपकी सेवा मै हमेसा हाजिर रहेगा हमारा समाचार पत्र,अमर उत्तराखँड, नमस्कार