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2 अक्टूबर 1994 मुजफ्फरनगर काण्ड से लेकर 2024 का उत्तराखण्ड राज्य

अनन्त आकाश
आज 2 अक्टूबर 024 को हमारा राज्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयन्ती मना रहा है । वहीं उत्तराखण्ड बापू को याद करते हुए इस दिन को काले दिवस के रूप में मना रहा है । इसी दिन 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली जा रहे राज्य आन्दोलनकारियों पर मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर पुलिस प्रशासन की गोली कई आन्दोलकारी शहीद हुए, पुलिस ने महिलाओं की इज्जत तार तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।उस दिन हम अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर मौजूद थे तथा कई आन्दोलनकारियों को गोलीबारी से बचाया तथा घायलों को सुरक्षित अस्पताल पहुंचाया।यह उल्लेखनीय है कि‌ जब सरकारी अमला आपे से बाहर था तब माकपा के नेता एवं आन्दोलनकारियों जिसमें दिवगंत सुशीला बलूनी ने संयम से काम लेकर सैकड़ों आन्दोलनकारियों को हताहत होने से बचाया ।

यह भी सत्य है कि भाजपा ‌के तत्कालीन सांसद जो बाद को बाजपेई सरकार में परिवहन राज्य मन्त्रि तथा उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री बने मेजर जनरल भुवनचन्द्र द्वारा केन्द्रीय गृहमंत्री को‌ लिखे पत्र‌ जिसमें उन्होंने लिखा उत्तराखण्ड के पूर्व सैनिक हाथियारबन्द होकर ‌दिल्ली रैली में आ रहे। हैं। परिणामस्वरूप गृह मन्त्रालय के निर्देश जगह जगह बैरिकेटिंग हुई ।मुजफ्फनगर काण्ड के बाद हमें दिल्ली के बजाय देहरादून वापस भेजा गया सायं तक देहरादून लौट पाए । अगले दिन यानि दोपहर 3 अक्टूबर 1994 को जोगीवाला में CPIM नेता कामरेड ओम प्रकाश चौधरी के पुत्र राजेश वालिया को पुलिस गोली का शिकार होना पड़ा। दून हास्पिटल में राजेश को मृत घोषित किया गया । राजेश की शहादत के तुरन्त बाद देहरादून में जिला प्रशासन ने कर्फ्यू घोषित किया ।हमनें पार्टी कार्यालय घण्टाघर में ही रुकने का फैसला किया। लगभग 4 दिन कार्यालय में रहकर आन्दोलनकारियों के सम्पर्क में रहे तथा दमन, उत्पीड़न के खिलाफ तथा पीड़ितों की समुचित सहायता के लिए जगह-जगह फैक्स भेजते रहे । इसी दौरान राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से टेलीफोन किया तब सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष उन्होंने दमनात्मक कार्यवाही के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर आवश्यक कार्यवाही के दिशा निर्देश दिये । आगे चलकर दमन एवं उत्पीड़न के खिलाफ निरन्तर आन्दोलन हुए।

संयुक्त मोर्चा की देवगौड़ा सरकार ने अलग राज्य की घोषणा की किन्तु उन्हें राज्य बनाने का मौका नहीं मिला। तत्पश्चात वाजपेयी सरकार ने उत्तरांचल नाम से अलग राज्य की स्थापना की। किन्तु वाजपेयी सरकार ने तमाम जन आकांक्षाओं को दरकिनार कर अपने ही संसाधनों से वंचित एक अधिकारबिहीन राज्य, राजधानी बिहीन तथा सर्वमान्य उत्तराखण्ड नाम को दरकिनार कर उत्तरांचल नाम का राज्य दिया। विडम्बना है कि 24 सालों में राजधानी के नाम पर भाजपा व कांग्रेस की सरकारों ने देश के अरबों-खरबों रुपऐ ठिकाने लगाए फिर भी जन आकांक्षाओं के प्रतीक गैरसैंण को राजधानी घोषित नहीं किया गया । राज्य बनने के बाद जन आकांक्षाओं की पूर्ति करने के बजाय भ्रष्ट राज नेताओं,अफसरों तथा भूमाफियाओं के नापाक गठबंधन ने लूटपाट का कार्य किया व सुनहरे भविष्य का सपना देख रहे उत्तराखण्ड की जनता को बेहद निराश किया ।भाजपा के शासन में तो सभी हदें पार हुई। उत्तराखंड के बचे-खुचे संसाधनों की लूटखसोट के लिए इनका केन्द्रीय नेतृत्व भी शामिल रहा है । आज भी इनके शीर्ष नेतृत्व की अकूत सम्पत्तियों की लम्बी फैहरिस्त हमारे राज्य में है ।

भाजपा कि डबल इन्जन सरकार ने तो अडानी ,अबांनि के हवाले राज्य को लूटने के लिऐ छोड़ दिया ।आज अगर गरीब अगर नदी-नालों तथा खालों ,पंचायत की जमीनों में बसे हैं तो उन्हे हर समय उजाड़ने के लिए तैयार हैं । आज गुजरात से लेकर उत्तराखंड नशे की जद्द में है । नशे के खिलाफ उत्तराखण्ड की मां,बहनों ने सतत् संघर्ष किया तथा नशा नहीं रोजगार दो का नारा जन – जन तक पहुंचाया । जनविरोधी भाजपा, कांग्रेस की सरकारों ने रोजगार देने के बजाय घर -घर नशे का व्यापार फैला दिया है ।इस नापाक गठबंधन के परिणामस्वरूप राज्य में अपराधों में बाढ़ सी आ गई है । आज न्यायालयों से लेकर प्रशासन के पास भूमाफियाओं के ऐसे मुकदमों की लम्बी फैहरिस्त है ,जहाँ भूमाफियाओं द्वारा सामान्य जनों एवं सरकारी भूमि पर कब्जा किया है।किन्तु भूमाफियाओं के खिलाफ कार्यवाही होना नामुमकिन सा लगता है ।

1994 में भी रोजगार व पलायन का मुद्दा प्रमुख था । आज यही मुद्दा हम सबके के सामने विभित्स रूप में खड़ा है ।अंकिता का मुद्दा भी कहीं न कहीं रोजगार से जुड़ा हुआ है ,यदि कोरोनाकाल में अंकिता के पिता का रोजगार न छीनता तो अंकिता को इतनी कम उम्र में रोज़गार के लिए न भटकना पड़ता , ना ही उसे दरिंदगी का शिकार होना पड़ता । इस प्रकार की सैकड़ों घटनाएं आये दिन होती आयी हैं । आज जिस विभाजन एवं साम्प्रदायिक राजनीति ,कारपोरेटपरस्त जनविरोधी नीतियों का ताण्डव सत्ताधारियों द्वारा हमारे राज्य में खेला जा रहा है इसके खिलाफ अनवरत एवं निर्णायक संघर्ष की आवश्यकता है , जिसके लिए सतत् प्रयास जरूरी है ।यही हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व उत्तराखण्ड आन्दोलन के शहीदों के प्रति सही मायनों में श्रद्धान्जलि होगी ।