देहरादून। ध्वस्तीकरण की कार्यवाही अवैध ठहराते हुऐ तथा प्रभावितों को समय देने कि मांग को लेकर आज विभिन्न जनसंगठनों राजनैतिक दलों ने नगर निगम पर जोरदार प्रदर्शन कर धरना दिया तथा नगर आयुक्त को ज्ञापन देकर ध्वस्तीकरण कि कार्यवाही गैरकानूनी तथा प्रभावितों को सबूत के समय के लिऐ और अधिक समय देने कि मांग कि है ।ज्ञापन में कहा गया है कि सबूत के तौर पर बिजली /पानी बिलों के अलावा आधार/वोटर कार्ड/राशन कार्ड अन्य सभी आवश्यक कागजातों को सबूतों के रूप माना जाना चाहिए ।प्रदर्शन के दौरान हि एक प्रतिनिधिमण्डल ने नगर आयुक्त गौरव कुमार से भेंट की तथा उन्हें ज्ञापन देकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया तथा उनसे हस्तक्षेप कि मांग कि ।नगर आयुक्त महोदय ने प्रदर्शनकारियों के मध्य आकर आश्वासन दिया कि वे प्रभावितों के मामले में गम्भीरता से विचार करेंगे तथा सभी प्रभावितों पक्ष रखने का पूरा का पूरा मौका देंगे उन्होंने कहा है कि यदि इस जद में कोई भी प्रभावशाली व्यक्ति का कब्जा पाया गया तो उसके खिलाफ भी नगरनिगम कार्यवाही करेगा ।
प्रदर्शनकारियों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि वे 30 मई 024 को सचिवालय पर होने वाले प्रदर्शन में अधिक से अधिक संख्या में हिस्सा लेंगे ।इस अवसर पर ज्ञापन मुख्यमंत्री ,शहरी विकास मन्त्री ,मुख्य सचिव तथा जिलाधिकारी देहरादून को प्रेषित किया ।
प्रदर्शन कि प्रमुख मांगे
(1)अतिक्रमण अभियान से जुड़े अधिकारियों एवं कर्मचारियों को निर्देशित किया जाऐ कि किसी भी साक्ष्य या दस्तावेज को वे लें और अगर कोई भी साक्ष्य है जिससे पता चलता है कि लोग 2016 से पहले बसे हैं तो प्रभावित परिवार का नाम अतिक्रमण की सूची सूची से हटाये जाये ।
(2) किसी को भी बेदखल करने से पहले कानूनी – प्रक्रिया को पूरा करें।साक्ष्य पेश करने के लिऐ कम से कम 30 दिन का समय दिया जाऐ ,हर व्यक्ति को सुना जाऐ ।
(3)बेदखल करने से पहले कानून और उच्चतम न्यायालय के फैसलों के अनुसार नियमितीकरण और पुनर्वास के लिऐ कदम उठाये जायें ।
(4)कार्यवाही पूरी तरह से निष्पक्ष हो और बेदखली की कार्यवाही बड़े इमारतों एवं प्रतिष्ठानों से शुरू करें ।
प्रदर्शन को सपा ,महिला मंच ,जनवादी महिला समिति ,सिपिआई ,एआईएलयू ,आयूपी ,उत्तराखंड आन्दोलन कारि परिषद ,उत्तराखण्ड पीपुल्स फ्रन्ट, नेताजी संघर्ष समिति
प्रदर्शन में चेतना आन्दोलन के शंकर गोपाल ,सिपिआई एम के राजेन्द्र पुरोहित ,अनन्त आकाश ,बसपा के दिग्विजय सिंह ,आयूपि के नवनीत गुसांई , सीआईटीयू के लेखराज ,रामसिंह भण्डारी ,एटक के अशोक शर्मा ,एस एस रजवार ,एस एफ आई से हिमान्शु चौहान ,कर्मचारी महासंघ के एस एस नेगी के अलावा हरिश कुमार ,अर्जुन रावत ,विनोद कुमार ,राजेन्द्र शर्मा ,दयाकृष्ण पाठक अर्जुन रावत ,
जारी कर्ता
अनन्त आकाश
सचिव ,सिपिआई एम
सेवा में
(1) श्रीमान आयुक्त नगरनिगम देहरादून ।
(2)श्रीमान उपाध्यक्ष
एमडीडीए देहरादून ।
महोदय,
देहरादून में ध्वस्तीकरण अभियान को लेकर हम आपके संज्ञान में कुछ गम्भीर मुद्दों को लाना चाहते हैं कि :-
(1)जबकि 2016 से पहले बसे लोगों की सम्पति को क़ानूनी सुरक्षा मिला है,लोगों के साक्ष्यों पर मनमानी आपत्तियां की जा रही हैं। मात्र बिजली और पानी के बिलों को ही मान्यता दी जा रही है जबकि कई लोग हैं जो पहले बसे थे, लेकिन बिजली और पानी का कनेक्शन बाद में लगवा पाए हैं उनके पास राशनकार्ड/गैस/डिएल/एल आई सी/जन्म प्रमाण/टैक्स/आधार/वोटर कार्ड आदि सबूत मौजूद हैं । इसके अतिरिक्त कुछ बिजली और पानी के बिलों पर भी नाजायज आपत्ति लगायी जा रही है।
अपना साक्ष्य पेश करने के लिऐ प्रभावितों को मात्र दो से छह दिन तक का समय दिया गया है । MDDA की ओर से जारी किया गये नोटिसों में 22 तारीख अंकित है जबकि हकीकत में 22 तारीख को अधिकांश लोगों के पास यह नोटिस पहुंचा हि नहीं । यहां तक कि कुछ लोगों को 27 और 28 को ही नोटिस मिला है। नगर निगम की ओर से दिए गए नोटिसों के साथ भी ऐसे ही हुआ और उन नोटिसों में साक्ष्य पेश करने के बारे में ज़िक्र ही नहीं है। ऐ गरीब परिवार हैं, जो दैनिक दिहाड़ी से कमाते हैं, उन्हें इस तरह से कम समय देकर परेशान करना न्यायोचित कदम नहीं है ।
(2) यह बेदखली की प्रक्रिया कौन सै क़ानूनी प्रावधान के तहत किया जा रहा है, इसका ज़िक्र कहीं नहीं है, बेदखली के लिए क़ानूनी प्रक्रिया स्पष्ट है जिसमें सुनवाई के लिए दस दिन दिया जाता है और बेदखली का आदेश होने के बाद तीस दिन स्वयं हटाने के लिए समय दिया जाता है। (2)उच्चतम न्यायालय के अनेक फैसलों के अनुसार बिना पुनर्वास का व्यवस्था कर किसी को बेघर करना संविधान के खिलाफ है। लेकिन इस अभियान के दौरान ऐसा कोई व्यवस्था नहीं दिखाई दे रही है।
– राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के आदेश का उलंघन करते हुए सिर्फ और सिर्फ मज़दूर बस्तियों पर कार्यवाही की जा रही है। बिल्डरों, होटलों और सरकारी विभाग द्वारा बनाये गए अतिक्रमण पर कोई भी कार्यवाही नहीं हो रही है ।
(3)इस अभियान को चलाने के लिए एक सप्ताह के अंदर रिस्पना नदी के किनारे बसे हुए बस्तियों का सर्वेक्षण किया गया था। लेकिन 2016 के मलिन बस्ती अधिनियम के अंतर्गत बनाई गयी नियमावली के तहत नगर निगम की ज़िम्मेदारी थी कि वे नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए भी सर्वेक्षण करते, जो अधिकांश बस्तियों में आठ साल में नहीं हुआ ।
अत :महोदय हम निवेदन करना चाहते हैं कि:-
– कर्मचारियों को निर्देशित किया जाये कि किसी भी साक्ष्य या दस्तावेज को वे ले लें और अगर कोई भी साक्ष्य है जिससे पता चलता है कि लोग 2016 से पहले बसे हैं, तो प्रभावित परिवार का नाम अतिक्रमण की सूची से हटाया जाये।
– किसी को भी बेदखल करने से पहले क़ानूनी प्रक्रिया को पूरा करे। साक्ष्य पेश करने के लिए कम से कम तीस दिन का समय दिया जाये और हर व्यक्ति की सुनवाई हो।
– बेदखल करने से पहले कानून और उच्चतम न्यायलय के फैसलों के अनुसार नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए कदम उठाया जाये।
– कार्यवाही पूरी तरह से निष्पक्ष हो और बेदखली की कार्यवाही बड़े इमारतों एवं प्रतिष्ठानों से शुरू करे।