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बस्तियों की सुरक्षा कानून 2018 के बावजूद पुलिस के बल पर काठबंगला ,तरला नागल की बस्तियों खाली कराने की निन्दा

देहरादून ।  विभिन्न जनसंगठनों तथा राजनैतिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने बस्तियों के हित में राज्य सरकार के 018 कानून के बावजूद भी पुलिस के बल पर काठबंगला तरला नागल की बस्तियों को जबरन खाली करवाने की कड़े शब्दों में निन्दा की है तथा कहा है कि सरकार एनजीटी के फैसले की आढ़ में गरीबों को उजाड़ने का कार्य कर रही है तथा बडे लोगों के कब्जों को बचाने का कार्य कर रही है ।भारतीय जनता पार्टी के लोग पहले गरीबों से वोट मांगते हैं फिर उजाड़ने का कार्य करते हैं,क्षेत्र ीय विधायक बस्तियों को रक्षा करने के बजाय बस्तियों के खिलाफ खड़े हैं। क्योंकि इनके जगह जगह अवैध कब्जे हैं, जिसका कड़ा विरोध किया जायेगा ।बैठक में सीपीएम सचिव अनन्त आकाश ,सीआईटीयू महामंत्री लेखराज अध्यक्ष किशन गुनियाल ,आयूपी अध्यक्ष नवनीत गुंसाई ,चेतना आन्दोलन के शंकर गोपाल ,राजेन्द्र शाह ,बस्ती बचाओ अभियान के नरेन्द्र सिंह ,राजेन्द्र शर्मा ,भीम आर्मी के आजम खान ,नेताजी संघर्ष समिति के प्रभात डण्डरियाल , किशन गुनियल ,एस एस एस नेगी हरीशकुमार ,रामसिंह भण्डारी ,रधुबीरसिंह ,सोनू ,डिम्पल ,रेणु ,ममता ,सुनीता ,कुसुम ,जतिनी ,सुनैना ,मनीषा ,मंजू ,रीना ,पिंकी ,प्रेंमफूल ,संगीता, सोनी ,विनोद,हरिओम ,सोनू के अलावा सपा ,महिला समिति ,एस एफआई,उत्तरा खण्ड आन्दोलनकारी परिषद के लोग उपस्थित थे ।


_बैठक ने पुनः मुख्यमंत्री  को दिये ज्ञापन के बिन्दुओं को दोहराया गया ।
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(1)अतिक्रमण अभियान या फिर एनजीटी के फैसले के तहत किसी भी बड़े बिल्डर, होटल या सरकारी विभाग पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।  यह एनजीटी के आदेश की सरासर अवहेलना है ,इसी की आढ़ में केवल गरीब बस्तियों को निशाना बनाया जा रहा है तथा बस्तीवासियों को अपमानित किया जा रहा है ।
(2) आपकी सरकार ने 2018 में कानून लाकर वायदा किया था कि 2021 तक सभी बस्तियों को मालिकाना हक मिलेगा । 2022 तक हर परिवार को पीएम मोदी का वायदा था कि घर मिलेगा,पुनः नवनिर्वाचित केन्द्र सरकार फिर से 3 करोड़ घर देने का ऐलान का असर हमारे राज्य में उल्टा है । इस स्थिति में मज़दूर वर्ग के परिवार कहाँ रहें ?

(3) कोर्ट में आपके अधिकारी निरन्तर घोर लापरवाही करते रहे हैं। 1 अप्रैल 024 को एक सुनवाई में हाज़िर तक नहीं हुए और फिर हरित प्राधिकरण से ऐसा आदेश आया जिसके बहाने लोगों को उजाड़ने की एकपक्षीय कार्यवाही की जा रही है ।
(4) बेदखली के लिए क़ानूनी प्रक्रिया है , लेकिन इस अभियान में कानून को ताक पर रखा गया है ,अनाधिकृत अधिकारी मनमानी तरीकों से मानक तय कर रहे हैं कि किसको बेदखल करना है ? प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं है और व्यक्तिगत सुनवाई और अपील करने का कोई मौका नहीं दिया जा रहा है। लोगों की और से दिए गए साक्ष्य को एकतरफा निरस्त कर ध्वस्तीकरण कर उन्हें प्रताड़ित एवं अपमानित कर बेघरबार किया जा रहा है। फिलहाल 2016 से पहले बसे लोग इस कार्यवाही कै शिकंजे में हैं जबकि 2018 में लाया गया आपका कानून सभी बस्तीवासियों को जो सुरक्षा देता है , उसे एक सिरे से खारिज किया जा रहा है ।
(5) बिना क़ानूनी प्रक्रिया को अपनाये किसी की सम्पति को नुक़सान पहुँचाना क़ानूनी अपराध है।  प्रभावित लोगों में से कई परिवार हैं जो अनुसूचित जाति के हैं , उनको गैर क़ानूनी तरीकों से बेदखल करना SC / ST (Prevention of Atrocities) Act के अंतर्गत संज्ञेय अपराध है।
इन सारे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए हम फिर से आपसे निवेदन करना चाहते हैं कि सरकार अपने ही वादों के अनुसार इस अभियान पर रोक लगाकर कानून तुरन्त लाये कि  किसी को बेघर नहीं किया जायेगा। बस्तियों का मालिकाना हक नियमितीकरण या पुनर्वास कै लिऐ युद्धस्तर पर कदम उठाना सरकार अपनी प्राथमिकता बनाये तथा पर्यावरण और उत्तराखण्ड की प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए बड़े बिल्डरों एवं सरकारी विभागों पर शक्ति सै कार्यवाही की जाये औ रिस्पना ,विन्दाल एलिवेटेड रोड जैसे बेज़रूरत, जन विरोधी एवं पर्यावरण विरोधी परियोजनाओं पर तुरंत रोक लगायी जाये।