समस्या को लेकर बस्ती वासी एमडीडीए जायेंगे
देहरादून। प्रतिनिधि मण्डल ने जिलाधिकारी श्रीमती सोनिका सिंह से भेंटकर उन्हें बस्तीवासियों की समस्या से अवगत किया तथा कहा कि एनजीटी के आदेश पर चलाये जा रहे अभियान कानून के हिसाब से नहीं तथा अभियान केवल गरीबों के खिलाफ चल रहा तथा अमीर एवं प्रभावशाली कब्जेदारों को छोड़ा ज रहा है ।बस्तीवासियों को दिये गये नोटिस विधिसम्मत नहीं हैं तथा सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों की अवहेलना है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि किसी को हटाओगे तो पहले पुर्नवास करोगे फिर हटाओगे किन्तु यहाँ नगरनिगम व एमडीडीए जोर जबरदस्ती बेदखली पर उतारू है लोग भयभीत हैं जो उजड़ाऐ गये वे खुले आसमान में जीने के विवश है ।प्रतिनिधि मण्डल ने जिलाधिकारी से अनुरोध किया कि वे प्रभावितों के लिये सुनवाई का प्रर्याप्त समय दें जिलाधिकारी ने एमडीडीए को न्यायोचित कार्यवाही का निर्देश दिया ।कल बस्तीवासियों द्वारा एमडीडीए जाने का फैसला लिया है।
प्रतिनिधि मण्डल में सपा के राष्ट्रीय महासचिव डाक्टर एस एन सचान ,चेतना आन्दोलन के शंकर गोपाल ,सीपीएम सचिव अनन्त आकाश ,सीआईटीयू महामंत्री लेखराज आदि शामिल थे
सेवा में
जिलाधिकारी देहरादून
महोदया,
आज सैकड़ों गरीब महिलाओं को आपके दफ्तर पर इसलिए पहुंचना पड़ा क्योंकि हाल में देहरादून में नगर निगम, MDDA और अन्य प्रशासनिक विभाग अतिक्रमण हटाने के नाम पर ध्वस्तीकरण अभियान चला रहे हैं। इस अभियान में कानून के प्रावधानों और संविधान के मूल्यों का घोर उल्लंघन हो रहा है। इस संदर्भ में हम आपके संज्ञान में कुछ बिंदुओं को लाना चाह रहे हैं:
– राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के 13.05.2024 के आदेश (पैराग्राफ 20) के अनुसार नगर आयुक्त देहरादून ने प्राधिकरण के समक्ष बेदखली को कानून के अनुसार कराने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। लेकिन बिना कोई क़ानूनी प्रक्रिया अपनाते हुए लोगों को बेदखल किया जा रहा है। अनधिकृत अधिकारी मनमानी तरीकों से तय कर रहे हैं कि किसको बेदखल करना है। प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं है और व्यक्तिगत सुनवाई और अपील करने का कोई मौका नहीं दिया जा रहा है।
– इस अभियान के दौरान कुछ लोग जो निश्चित रूप से 2016 से पहले रह रहे थे, उनकी सम्पतियों को भी नुक्सान पहुंचवाया गया है।
– महोदया, बेदखली के लिए क़ानूनी प्रक्रिया है, जो उत्तर प्रदेश पब्लिक प्रेमिसेस (एविक्शन ऑफ़ अनअथॉराइज़्ड ऑक्यूपेशन) अधिनियम में अंकित है। लेकिन इस कानून को ताक पर रखा गया है।
– इसके अतिरिक्त, प्राधिकरण का आदेश केवल मामले से सम्बन्धित पक्षकारों पर ही लागू होता है और ऐसे लोगों को मनमाने तरीके से उजाडा जा रहा है, जो इस मामले में पक्षकार नहीं हैं और उन्हें अपना पक्ष रखने का प्राधिकरण में कोई मौका ही नहीं दिया गया है।
– महोदया, बिना क़ानूनी प्रक्रिया को अपनाये किसी की सम्पति को नुक़सान पहुँचाना क़ानूनी अपराध है। प्रभावित लोगों में से कई परिवार हैं जो अनुसूचित जाति के हैं और उनको गैर क़ानूनी तरीकों से बेदखल करना SC / ST (Prevention of Atrocities) Act के अंतर्गत भी अपराध है।
– महोदया, हमारे संविधान के अनुसार आश्रय का अधिकार मौलिक अधिकार है। उच्चतम न्यायलय के अनेक फैसलों में इस सिद्धांत को दोहराया गया है (Olga Tellis & Ors v. Bombay Municipal Corporation, 1986 AIR 180, 1985 SCR Supl. (2) 51 (1985) , Shantistar Builders v. Narayan Khimalal Totame, AIR 1990 SC 630 (1990) , इत्यादि)। इसलिए बिना पुनर्वास की व्यवस्था कर मज़दूर परिवारों को बेघर करना संविधान के मूल्यों के विरुद्ध है।
– महोदया, देहरादून की नदियों एवं नालियों में होटल, रिसोर्ट, रेस्टोरेंट और अनेक अन्य निजी संस्थानों द्वारा और सरकारी विभागों द्वारा भी अतिक्रमण हुए हैं। हरित प्राधिकरण के आदेश में कोई ज़िक्र नहीं है कि कार्यवाही सिर्फ मज़दूर बस्तियों के खिलाफ करना है, लेकिन किसी भी अन्य अतिक्रमणकारी को नोटिस तक नहीं गया है। इसलिए यह अभियान न केवल गैर क़ानूनी है बल्कि भेदभावपूर्ण भी है।
अतः हमारा आपसे निवेदन है कि:
– इस गैर क़ानूनी ध्वस्तीकरण अभियान पर तुरंत रोक लगायी जाय। – कोई भी बेदखली की प्रक्रिया कानून के अनुसार हो।
– तमाम गरीब व भूमिहीन लोगों की पुनर्वास की ब्यवस्था करने के बाद ही यदि आवश्यक हो तो सम्बन्धित स्थान से विस्थापित किया जाये। देश की आजादी के बाद हर देशवासी को, आवास ,शिक्षा व रोजगार पाने का हक है, और जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का काम अपने दायित्वों का निर्वहन कर इसे पूरा करने का है।
– जिन परिवारों के घरों को बिना कोई क़ानूनी प्रक्रिया अपनाते हुए तोड़े गए हैं, उनको मुआवज़ा उपलब्ध कराया जाये और ज़िम्मेदार अधिकारियों पर कार्यवाही की जाये।
– हाल के बर्षो में ग्राम पंचायत स नगरनिगम मे ं जुड़े क्षेत्र से जुड़ै लोंगों कै नोटिस निरस्त हों ।