प्रख्यात मजदूर नेता दिवगंत कामरेड भण्डारी की चौथी पुण्यतिथि है ,आज ही के दिन 2021 में लम्बी बीमारी के बाद उन्होने इस दुनिया को अलविदा कहा ।
2 जून 1950 को बुद सिंह भण्डारी व श्रीमती भगवती भण्डारी के परिवार में जन्मे तीन भाइयों व दो बहिनो में दूसरे नम्बर के बेटे थे, कामरेड बिरेन्द्र भण्डारी ।
कामरेड बिरेन्द्र भण्डारी का जनपद पौड़ी गढ़वाल के गाँव मेलधार पट्टी मेलधार, तहसील बेदीखाल ब्लॉक थैलीसैंड में जन्म हुआ ।
आजादी से पूर्व उनके पिताजी, जो आज के पाकिस्तान का हिस्सा है रोजगार हेतु चले गये थे और देश की आजादी के बाद जब विभाजन हुआ तो वे वापस हिन्दुस्तान आ गये तथा पैतृक गांव जाने के बजाय वे देहरादून आ गये औऱ यहीं पर अपने परिवार रहकर छुटपुट ब्यापार करने लगे ।बाल्यावस्था में ही उनके पिता का देहान्त हो गया और परिवार की पूरी जिम्मेदारी कामरेड भण्डारी के कन्धों पर आ गयी । परिवार की आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिये उन्होंने देहरादून के रायपुर मे जहाँ आज उनकी पैतृक सम्पति है , चाय की दुकान खोली जिसमें परिवार के लोग भी मदद करते थे, कामरेड भण्डारी प्रातः साइकिल से अखबार बेचा करते थे बाद में उन्होंने लम्बे समय तक साइकिल से ही दूध बेचने का भी काम किया रायपुर में रक्षा क्षेत्र की फैक्ट्रियों का क्षेत्र होने के कारण वहां मजदूर बाहुल्य क्षेत्र के नाते , मजदूरों की यूनियनों का गठन करने में भी कामरेड भण्डारी का बड़ा योगदान रहा है । अपने भाई बहिनों की शिक्षा शादी विवाह की जिम्मेदारी के साथ- साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और स्नातक के बाद एलएलबी की डिग्री हासिल की वै देहरादून के श्रम कानूनों के अच्छे वकीलो में उनका नाम लिया जाता है ।
कामरेड भण्डारी बचपन से ही वामपंथी विचारों से काफी प्रभावित थे, उन्होंने अपने छात्र जीवन में एसएफआई के गठन से पूर्व डीएवी महाविद्यालय मे प्रगतिशील छात्रो के समूह का गठन किया था इस समूह के जसबिन्दर सिंह मिक्की जी छात्र संघ के अध्यक्ष भी चुने गये थे, इसी दौर मे गढ़वाल बिश्वविद्यालय का आन्दोलन चल रहा था तब इस ग्रुप ने एसएफआई के नाम से इस आन्दोलन को समर्थन दिया था, उसके बाद डीएवी महाविद्यालय मे एसएफआई का गठन हुआ ।
1980 मे कामरेड पूरन चन्द के कहने पर कामरेड भण्डारी सीआईटीयू में आये और मजदूरो के बीच काम करने लगे कामरेड भण्डारी ने सबसे पहले कानपुर से ड्राइवर कण्डेक्टर यूनियन का पंजीयन करवाकर सीटू के साथ जोड़ा इससे पूर्व केवल बल्ब फैक्ट्री व चाय बागान की ही यूनियनें ही सीटू के साथ थी इसके बाद देहरादून में सीआईटीयू का विधिवत गठन हुआ, कामरेड पूरण चन्द अध्यक्ष और कामरेड भण्डारी महासचिव चुने गये ओर लम्वे समय तक देहरादून सीटू के महासचिव रहे । वर्ष 2000 मे जब उत्तरप्रदेश से अलग उत्तराखण्ड राज्य बना तो कामरेड सत्य प्रकाश अध्यक्ष व कामरेड भण्डारी उत्तराखण्ड सीआईटीयू के महासचिव चुने गये तथा लम्बे समय तक इस पद पर रहे, कामरेड सत्य प्रकाश के देहान्त के बाद कामरेड भण्डारी प्रान्तीय अध्यक्ष चुने गये ।
वर्ष 1964 में देहरादून के कांवली रोड पर स्थित अफ्रीका हाउस जो प्रगतिशील लोगों का आवास हुआ करता था आज भी यह भवन स्थित है इसी ऐतिहासिक भवन मे पार्टी के संस्थापक सदस्यो में रहे कामरेड गुरदीप सिंह ने कामरेड बिरेन्द्र भण्डारी को पार्टी का सदस्य बनाया था । उन्होंने कामरेड भण्डारी के पार्टी सदस्यता फार्म मे प्रस्तावक के रूप मे लिखा था कि इस कामरेड में क्रान्तिकारी बनने के पूरे गुण दिखाई देते है । कामरेड भण्डारी ने 1974-75 के दौर मे कामरेड विजय रावत के साथ किसान सभा मे भी काम किया ।
निश्चित तौर पर संगठन के नेतृत्वकारी साथी के जाने से अपूर्णीय क्षति होती है । वे पार्टी व ट्रेड यूनियन के राज्य के शीर्षस्थ नेतृत्व में थे । उनके जीवन की अनेक महत्वपूर्ण राजनैतिक घटनाओं में रायपुर पंचायत में उप प्रधान के पद पर रहते हुये व प्रधान के मृत्यु के बाद लम्बे समय तक ग्राम प्रधान पद का दायित्व निभाना व बाद मे रायपुर ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ना भी था । इस चुनाव में आतंक का प्राय: बन चुके रेशम थापा के खिलाफ पार्टी द्वारा कामरेड भण्डारी को प्रत्याशी बनाया जाना व सभी साथियों द्वारा डटकर मुकाबला करना शामिल था । इस घटना से एक बेहद साधारण परिवार के युवा साथी भण्डारी को आगे बढ़ने का अवसर मिला । आगे चलकर वे देहरादून के प्रतिष्ठित श्रमिक नेता बने व कामरेड सुनील चन्द दत्ता ,कामरेड निताई घोष ,कामरेड पूरन चन्द द्वारा स्थापित परम्परा के वाहक बने ।
मंहगाई के खिलाफ जेल भरो आन्दोलन, ट्रेड यूनियन का ईंट भट्टा आन्दोलन व राजा डुमराव स्टेट के खिलाफ कारबारी की जनता का ऐतिहासिक आन्दोलन उस दौर में सुर्खियों में रहा, जिसके चलते हमारी पार्टी के साथियों को पुलिसिया दमन का सामना करते हुऐ भी आगे बढ़कर जनता के बीच पहचान बनाने का अवसर मिला । कारबारी का ऐतिहासिक आन्दोलन हमारी पार्टी व क्षेत्र के विकास में मील का पत्थर साबित हुआ जहाँ किसान सभा के नैतृत्व में डुमराव स्टेट की तानाशाही के खिलाफ ऐतिहासिक संघर्ष चला कर राजा द्वारा गांव के कब्जाये रास्ते को मुक्त किया । छोटी पार्टी होने के बावजूद ऐतिहासिक कार्य की शुरुआत कर डाली । इस आन्दोलन के बाद आरकेडिया, सभावाला, सहसपुर आदि अनेक पंचायतों में पार्टी कामरेड्स ने जीत हासिल कर कुशल नैतृत्व दिया । 1982- 83 ईंट भट्टा तथा 1986 पर्यावरण की आड़ में उद्योगों को बन्द करने के खिलाफ आन्दोलनों मे सीआईटीयू की भूमिका केन्द्र में आ चुकी थी । देहरादून शहर को अपनी आधुनिकता के लिये प्रसिद्धि मिल रही थी जबकि इसके ग्रामीण क्षेत्र कांवली, मेहूवाला, पित्थुवाला, बंशीवाला आदि में स्थापित ईंट भट्ठों के मजदूर दशकों से बन्धुवा मज़दूर के रूप में पिस रहे थे । इसके विरोध में आयोजित आन्दोलन के कारण वहाँ कार्यरत मज़दूरों की मुक्ति का रास्ता खुला तथा काम के घण्टे तय हुये तथा मज़दूरी में इज़ाफा हुआ । इस आन्दोलन का नैतृत्व कामरेड बिरेन्द्र भण्डारी कर रहे थे ।
1986 में पर्यावरण की आड़ में चूना ,सीमेंट आदि उद्योग बंद किये जा रहे थे ताकि दून घाटी राजनेताओं तथा नौकरशाहों की ऐशगाह बन सके । किन्तु हमारी पार्टी व ट्रेड यूनियन ने वैकल्पिक नीतियों को पेश करते हुऐ (पर्यावरण भी सुरक्षित रहे व उद्योग धन्धे भी चलते रहें) नारे को आगे बढ़ाया व इसमें काफी हद तक सफलता हासिल की ।
आज सीआईटीयू के जिला कार्यालय में उनकी चौथी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया जिसमे कामरेड बीरेन्द्र भण्डारी के संघर्षों व कुर्बानिंयों को याद किया गया ।