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चिपको आन्दोलन की 51 वीं बर्षगांठ पर विशेष

चिपको नेत्री गौरादेवी को शत् शत् नमन 

त्तराखण्ड की जनता को चाहिए सुनियोजित विकास :- अनन्त आकाश

आज 26 मार्च 2025 को चिपको आन्दोलन की 51वीं बर्षगांठ है ,आज ही के दिन 26 मार्च 1974 को गौरादेवी के नेतृत्व में रेणीगांव की महिलाओं ने पेड़ों पर चिपक कर सरकार को वनों को काटने से रोका था जो देश दुनिया में चिपको आन्दोलन के रूप में विख्यात हुआ । इस आन्दोलन के प्रेणता थे कामरेड गोबिंद सिंह रावत जिन्होंने अपने साथियों के साथ गांव गांव जाकर खासकर महिलाओं में जागरूकता जगाने का अभियान चलाया था। उन्हीं में थी गौरादेवी एव उनकी सहेलियां ,जिन्होंने इस लड़ाई को आगे बढ़ाया ।

कम्युनिस्टों का इस नीति घाटी में सतत् संघर्षों का इतिहास रहा है। 1974 में बद्रीनाथ मन्दिर की मरम्मत के नाम पर किये जा रहे परिवर्तन पर रोक हो तथा हकहकूकों की रक्षा के लिए चाहे रैणी गांव से शुरू चिपको आन्दोलन हो या फिर चांई गांव को बचाने की लड़ाई या फिर भीमकाय परियोजनाओं का विरोध हो , 2021 की आपदा के समय जनता के दुखदर्दों में हिरावल भूमिका भी कम्युनिस्टों ने निभाई है। आज जहाँ भी जनपक्षीय संघर्ष है ,पेड़ो व पर्यावरण की रक्षा का मुद्दा हो, वहाँ कम्युनिस्ट ही बडे़ ही सिद्दत के साथ लड़ रहे हैं । बावजूद इसके

आज कोरपोरेटपरस्त नीतियों के चलते उत्तराखण्ड में बेहद अनियोजित तथा अनियन्त्रित विकास के कारण पर्यावरण को आयेदिन नुकसान पहुंचाने की योजनायें बनायी जा रही हैं।

आज देहरादून में एलिबेटेड रोड़ ,सात मोड़ में सड़क चौड़ीकरण 4 हजार पेड़ तथा पौंधा में सड़क बनाने के नाम पर हजारों पेड़ों को काटने का प्रस्ताव, आल वेदर रोड़,साईबर ,ट्वीन सिटी ऐरो सिटी ,जोशीमठ , बद्रीनाथ मास्टर प्लान ,केदारनाथ मेंं चल रहे भारी भरकम निर्माण चर्चाओं के केन्द्र में है । बद्रीनाथ के मास्टर प्लान को ही धाम की मौलिकता के साथ नैसर्गिकता के खिलाफ माना गया है ,यहाँ हर तीसरे चौथे साल एक लान्च आते रहते हैं,1978 में आये लान्च ने बद्रीनाथ का पुराना बाजार ही तबाह कर दिया था ।

चिपको आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य ही क्षेत्र में जल ,जगंल ,जमीन की रक्षा का संदेश था जो रैणीगांव की महिलाओं ने गौरादेवी के नेतृत्व में दशकों पहले कर दिखाया था । उस जमाने में वाईस आफ अमेरिका ,बीबीसी तथा रेडियो बीजिंग से चिपको आन्दोलन की काफी चर्चा रही ।1962 में भारत चीन युद्ध के बाद भारत सरकार तेजी से इस क्षेत्र में सामरिक जरूरतों के नाम पर जमीनों का अधिग्रहण कर रही थी तथा परिणामस्वरूप अनियोजित योजना के खिलाफ चिपको आन्दोलन की भूमिका की शुरूआत हुई । इसी दौरान

नीति पास के गांव तपोवन ,गोबिन्द घाट तथा फूलों की घाटी में आने वाले गांवों जो कि नन्दादेवी के रास्ते पर पड़ते थे , जिनमें रैणीगांव ,पोलना ,,म्यूंदार आदि जनजागृति अभियान चला , जिसकी अगवाई कामरेड गोबिंद सिंह रावत ने की ,जो बाद में जोशीमठ के ब्लाक प्रमुख बने तदोपरान्त कामरेड बचनसिंह उनके पद पर चुने गये ।कामरेड गोबिन्द सरकारी सेवा छोड़कर समाज के लिए समर्पित हुऐ राजस्व विभाग में पटवारी होने के कारण उन्हें क्षेत्र का काफी ज्ञान था ,वे चिपको आन्दोलन के बारे में पहले से ही जानते थे ,क्योंकि इससे पहले राजस्थान यह आन्दोलन हो चुका था । गौरादेवी जो कि मूलरूप से रैणीगांव की थी, जिनका गांव देवदार के घने बृक्षों से आच्छादित था ,जंगली जड़ी ,बुटियों को नष्ट करने ,पेड़ों को काटने वन विभाग व ठेकेदार आया तब उन्होंंने पेड़ों से चिपटकर पेड़ों की रक्षा की तथा चिपको आन्दोलन का सन्देश दुनिया को पहुंचाया । यदि आज भी हमारे व्यवस्था के लोग इस आन्दोलन से सबक लेते तो निश्चित तौर पर हम बार बार आ रही आपदाओं के रूबरू न होते । ,” इन्सान बेहतर जीवन की अभिलाषा रखता है, और बेहतर जीवन विकास के बिना सम्भव नहीं है ,आर्थिक ,सामाजिक अथवा भौतिकी इस प्रकार के विकास का अन्तिम लक्ष्य मानव जीवन स्तर सुधारना है ,तथा लोगों के लिए बिकल्पों को बढा़ना है।हमारे लिऐं ऐ लक्ष्य प्रकृति के साथ सामजस्य से ही हासिल किया जाना चाहिए । अगर लाभ प्राप्त के लिए प्रकृति से ज्यादती की गई तो परिणाम जोशीमठ जैसा ही सामने आ सकते हैं ।

प्रकृति से छेड़छाड़ का यह पहला वाक्या नहीं है ,फरवरी 2021 में जोशीमठ के पास ही धौलीगंगा -ऋषिगंगा में बन रहे बिजली प्रोजक्टों को बाढ़ ने हटाकर सन्देश दिया था कि संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में प्रकृति के ज्यादती करोगे तो हाल यही होगा । इस हादसे में 200 से भी अधिक लोग जिन्दा दफन हो गये थे ।
2013 में केदारनाथ में आयी अकल्पनीय बाढ़़ आयी ।

825 किलोमीटर आलवेदर रोड़ 40 हजार से भी अधिक पेड़ों का कटान तथा पहाड़ों को काट-काट कर पुराने भूस्खलनों को जगा दिया है।2013 के बाद 395 गांव खतरे में हैं , तथा जिनमें 73 अत्यधिक संवेदनशील हैं ।

उत्तराखण्ड जन सरोकारों से जुड़े अनेक लोगों का मानना है कि जोशीमठ ही नहीं बल्कि पूरे हिमालयी राज्यों पर इस जनविरोधी विकास का दुष्प्रभाव पड़ रहा है , इसके विरूद्ध बड़ा जन आन्दोलन बनाने की आवश्यकता है ,उनका मानना है कि

“उत्तराखण्ड सहित सभी हिमालयी राज्यों के अनुभवी लोगों ,देश के बिशेषज्ञ वैज्ञानिकों को आमन्त्रित कर जनपक्षीय विकास की दिशा तय की जाऐ ”
विशेषज्ञों का मानना है कि जोशीमठ में ढ़लान के साथ अब ज्यादा छेड़छाड़ न की जाऐ ,पानी निकासी एवं सीविरेज की समुचित व्यवस्था की जाने की आवश्यकता है ।
आज जोशीमठ असुरक्षित घरों 782 में से 148 सर्वाधिक असुरक्षित हैं । गोपेश्वर एवं कर्णप्रयाग कुछ क्षेत्रों में तेजी से दरारें आ रही हैं ।
“बात सत्य साबित हुई है कि अंग्रेजों ने बसाया है ,और हमने उजाड़ा है ,भूस्खलनों को रोकने के लिऐ अंग्रेजों ने खास किस्म की घास रोपी तथा चाय बागान लगाये और हम इन चाय बगानों की भी रक्षा नहीं कर पाये ,इन तमाम अनदेखियों ने हमें बेघरबार कर दिया ।

जोशीमठ के सामने बांध परियोजना से 2005 में चांई गांव प्रभावित 22 परिवारों का सही बिस्थापन एवं मुआवजा एवं शर्त के अनुसार प्रत्येक परिवार के सदस्य को परियोजना में नौकरी के समझौता 19 साल बाद भी लागू नहीं कर पाये हैं ,,बावजूद जोशीमठ को भी केदारनाथ के तर्ज पर बसाया जा रहा है ,ऐसा लगता है हमारी व्यवस्था घटनाओं से सबक नहीं ले रही है ।

आज फिर से जनपक्षधरता वाले लोगों को आगे आकर अपनी निर्णायक भूमिका निभानी की आवश्यकता है ,उत्तराखण्ड की जनता को चाहिए सुनियोजित विकास ।_