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1857 की क्रान्ति की वीरांगना रानीझांसी लक्ष्मीबाई की जयन्ती पर शत् शत् नमन :-अनन्त आकाश

भारत के मुक्ति संघर्ष में 1857 की क्रान्ति मील का पत्थर है । एक अनुमान के अनुसार लगभग 8 लाख से भी अधिक भारतीय इसमें शहीद हुऐ तथा 8 हजार अंग्रेज मारे गये । यह क्रान्ति जो 1757 में अंग्रेजों द्वारा पलासी युध्द जितने के बाद देश में चलाऐ जा रहे , अनैतिक एवं अन्यायपूर्ण शासन तथा हड़पने की नीति के खिलाफ जनविद्रोह का प्रतीक है । जिसे तैयार होने में एक सदी लगी यानि 100 साल लगे । इसी क्रान्ति की बीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की‌ आज जयन्ती है ,आज ही‌ के दिन 19 नवम्बर 1848 में उनका जन्म हुआ था‌,इस वीरांगना ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ लड़ते हुऐ बीरगति प्राप्त की थी , हि्दुस्तानियों की बढ़ती एकता को देखते हुऐ ,1858 में इग्लैंड की महारानी ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन खत्म करते हुऐ हिन्दुस्तान के लिए कैबिनेट सचिव के अन्तर्गत 15 सदस्यीय कमेटी का गठन किया । हड़प नीति को समाप्त करते हुऐ कई सुधारों की धोषणा की ।

इस क्रान्ति का सम्पूर्ण नेतृत्व हिन्दुस्तान के अन्तिम बादशाह बहादुर शाह जफर के हाथ में था ।इतिहास गवाह है कि जहाँ बहादुर शाह जफर ,रानी झांसी ,वेगम हजरत महल आदि अंग्रेजों से लोहा ले रही थे वहीं कुछ हिन्दू राजा जिनमें ग्वालियर का सिंधिया परिवार ,कोलकाता ,मुम्बई ,मद्रास के उच्च वर्ग परिवार उनके लिऐ प्रार्थनाऐं कर रहे थे , वे अंग्रेजों की मदद कर रहे थे ।जैसे आजादी के आन्दोलन में कुछ लोगों ने अंग्रेजों के लिए न केवल मुखबिरी की बल्कि जनता की एकता को तोड़ने का भी काम किया ।

भारत की गुलामी के 100साल बाद सैनिक कारणों से 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में सैन्य विद्रोह हुआ इससे तीन दिन पहले 20 एन आई ए के सैनिकों ने बन्दूकें इस्तेमाल करने से मना कर दिया था । इसमें मुख्य कारण बैरकपुर छावनी में कारतूसों में सुअर एवं गाय की चरबी लगे कारतूसों को मुंह से तोड़ने के लिए विवश किया जा रहा था । 29 मार्च 1857 सैनिक मंगलदेश पाण्डे के नेतृत्व में सैन्य विद्रोह की शुरूआत हुई , जिसे अंग्रेजों ने बेरहमी से कुचलकर पूरी बटालियन को ही बर्खास्त किया । किन्तु बात ही नहीं रूकी 10 मई को यह विद्रोह मेरठ से शुरू होकर 11 मई 1857 को लखनऊ,कानपुर ,बरेली,बनारस, दिल्ली ,अवध,विहार ,झांसी सहित अनेक क्षेत्रों में फैल चुका था । सैनिक विद्रोह तेजी से राजनैतिक ,सामाजिक तथा आर्थिक कारणों से जन विद्रोह में बदलकर क्रान्ति का स्वरूप लेने लगा । जिसे इतिहास में 1857 की क्रान्ति के रूप में प्रसिध्दी मिली , जिसमें हड़प नीति के तहत बेरोजगार हो चुके कुलीन परिवारों सहित आम जनता के विभिन्न हिस्से शामिल थे ।समर्थन के पीछे वे लोग भी थे जिनका राजपाट अंग्रेजों ने कब्जा लिया था ,वे लोग जो कारतूस में चरबी के प्रयोग को अपने धर्म पर हमला मान रहे थे ,जिनमें हिन्दू मुस्लिम शामिल थे ,इस क्रान्ति में वे लोग भी शामिल थे ।जिनके बेटों के साथ सेना में भारी भेदभाव हो रहा था व उसी काम के लिये भारतीय सैनिकों को कम अंग्रेजों को ज्यादा वेतन एवं सुविधाऐं दी जा रही थी ।तथा ज्यादा से ज्यादा पदोन्नति सुबेदारी तक थी,उन्हें अनिवार्य रूप से भारत से बाहर युद्ध के लिए भेजा जाने लगा और इस क्रांति वे भी महत्वपूर्ण हिस्से थे जिनके परिवार इग्लैण्ड के मैनेचैस्टर कपड़ा उधोग के कारण बेरोजगार हो गये थे तथा उनके घरेलू हथकरघा उधोग बन्द हो रहे थे । जिनमें जुलाहे आदि शामिल थे ।इस क्रान्ति हिस्से आदिवासी तथा कपास से जुड़े किसान आदि शामिल थे । हालांकि यह आन्दोलन उत्तरी क्षेत्र में काफी व्यापक था किन्तु दक्षिण में इसका असर नहीं था ।

21 मार्च को जनरल ह्यूरोज के झांसी आने के बाद 1858 में रानी लक्ष्मीबाई का अंग्रेजों से युद्ध हुआ ,3 अप्रैल को रानी ने अपने सेवकों, कुछ परिजनों और सैनिकों के साथ किला छोड़ दिया। वो कालपी की ओर रवाना हुईं। 3 जून को रानी ग्वालियर पहुंची।12 जून को पता चला कि अंग्रेजी फौज सिंध नदी के पास पहुंच गई है। क्रांतिकारी फौज ने 16 जून को तोपों से कंपनी फौज पर हमला कर दिया। भयंकर गर्मी और तोपों की मार के कारण कंपनी सेना पहाड़ियों की तरफ बढ़ गई।

17 जून को कंपनी सेना ने पहाड़ियों से‌ आक्रमण किया। रानी युद्ध के दौरान फूलबाग (ग्वालियर) में थीं। फौज के साथ उनकी बहादुर सेविका मुंदीर भी साथ थी। उन्होंने अपने दत्तक पुत्र दामोदर को रामचंद्र राव देशमुख को सौंप दिया, जो उसे सुरक्षित स्थान पर ले गए। इसके बाद हुए भीषण युद्ध में रानी लक्ष्मी बाई, मुंदीर और रघुनाथ सिंह कुछ सिपाहियों सहित अपने सैनिक दल से बिछड़ गए। अकेला देख अंग्रेजी सेना इन पर टूट पड़ी। महारानी ने इस युद्ध में सोनरेखा नाला पार करना चाहा, लेकिन तभी मुंदीर को गोली लग गई।

,ये देख रानी ने गोली मारने वाले अंग्रेज सैनिक को पलक छपकते ही तलवार से मार गिराया। तभी कई अंग्रेजी सैनिकों ने रानी को घेर लिया और महारानी के सिर पर वार किया। रानी के चेहरे का दाहिनी आंख तक कट गई और गहरे जख्म होने की वजह से खून बहने लगा। फिर भी उन्होंने आगे बढ़ने की कोशिश की और नाला पार किया।घोड़े की पीठ पर खून से लथपथ पड़ी थीं रानी

इसी दौरान उनके बाईं ओर से चलाई गई गोली सीने में प्रवेश कर गई। गोली लगने से वो घोड़े की पीठ पर ही बेहोश हो गईं। वो घोड़े पर ही खून से लथपथ पड़ीं थीं।उनके अंगरक्षक गुल मौहम्मद पठान बाद में रानी को गंगादास के आश्रम ले गए। यहीं वीरांगना ने आज 17 जून 1857 को प्राण त्याग दिए।बाबा के आश्रम में अंतिम संस्कार ,रामचन्द्र राव ने महारानी के मुख में गंगाजल डाला था। गंगादास बाबा के आश्रम पर जो घास का ढेर और लकड़ियां थीं। इन्हीं से रानी का अंतिम संस्कार हुआ।अगले दिन 18 जून को सुबह करीब 9 बजे जब अंग्रेज अफसरों को इसकी सूचना मिली, तो वो गंगादास की कुटिया पहुंचे। तब उन्होंने 18 जून, 1858 को रानी की शहादत की घोषणा की।
अंग्रेजी हुकूमत बिर्टिस ईस्ट इंडिया के खिलाफ 1857 को बिद्रोह हुआ जिसमे रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी सेना का नेतृत्व किया काफी दिनों तक युद्ध चलता रहा अंग्रेजो को जीत नहीं मिली अंग्रेजी हुकूमत जान चुकी थी सेना के बल से युद्ध नहीं लड़ा जा सकता है

तब उन्होंने कूटनीति का सहारा लिया झाँसी के किसी विश्वास घाती सरदार भोला सिंह को अपने साथ मिला लिया उसने छल से किले का दक्षिणी दरवाजा खोल दिया 1858 को 20000 हजार अंग्रेज सिपाही किले में घुस गए और युद्ध करने लगे झाँसी की सेना ने उनका डटकर मुकाबला किया ,यह किला आज भी रानी लक्ष्मी बाई को याद करता है । जहाँ बहादुर शाह जफर ,रानी झांसी ,वेगम हजरत महल आदि अंग्रेजों से लोहा ले रही थे वहीं कुछ हिन्दू राजा जिनमें ग्वालियर का सिंधिया परिवार ,कोलकाता ,मुम्बई ,मद्रास के उच्च वर्ग परिवार उनके लिऐ प्रार्थनाऐं कर रहे थे , वे अंग्रेजों की मदद कर रहे थे ।जैसे आजादी के आन्दोलन में कुछ लोगों ने अंग्रेजों के लिए न केवल मुखबिरी की बल्कि जनता की एकता को तोड़ने का भी काम किया ।