Breaking News

कारपोरेट परस्त नीतिया और मूल निवास प्रमाणपत्र व भू कानून का सवाल ?

अनन्त ‌आकाश
“चन्द  महीने पहले  लोकसभा चुनाव 024 सम्पन्न हुऐ , चुनाव में सदैव की भांति राज्य में मूल निवास एवं जमीन का  सवाल  नेपथ्य में चला गया तथा बेरोजगारी के सवाल पर हुऐ आन्दोलन का नेतृत्व भी भाजपा का मोहरा बनकर रह गया इस प्रकार सत्ता विरोधी वोटों ‌के विभाजन ने भाजपा को फिर से लोकसभा की पांचों सीटें जिता दी l भाजपा की डबल इन्जन सरकारों  विफलताओं के बावजूद भाजपा एवं‌ संघ ‌ परिवार अपने हिन्दुत्व के एजेण्डे  को समझाने में कामयाब रही ।वामपंथियों को छोड़कर तमाम राज्य की छोटी बड़ी ताकतों द्वारा अपनी संकीर्णता के चलते भाजपा के खतरे को समझने की भूल की कुछ ने मोदी ,कुछ ने योगी  कुछ ने मन्दिर से तथा कुछ ने हिन्दू मुस्लिम के नाम पर वोट देकर अपने ही भबिष्य के साथ खिलवाड़ किया ।इनमें बेरोजगार ,मूल निवासी ,भू कानून के‌ आन्दोलनकारी ,वे सैनिक परिवार भी हैं जो अग्निबीर
योजना के कारण अपना स्थाई रोजगार एवं सम्मान गवां चुके ‌हैं । भाजपा की वापसी के प्रमुख कारणों में से  कांग्रेसियों की निहित स्वार्थों के लिऐ गुटबन्दी तथा क्षेत्रीय दलों की राजनैतिक अपरिपकता तथा अदूरदर्शिता शामिल है ।
चुनाव के बाद मूल निवास ,भू कानून की मांग पर पुन :जगह जगह महारैलियां  हो रही हैं। जो लोग चुनाव में बढ़चढ़कर भाजपा के लिऐ वोट मांग रहा थे उसी का बड़ा हिस्सा रैली का हिस्सा बन रहा है । इतिहास गवाह है‌ कि जिस आन्दोलन में राजनैतिक चेतना तथा परिपक्वता न हो उसको सत्ता हर  लेती‌ है ।बेरोजगार संघ‌ के आन्दोलन के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ ।अन्तत: ऐसे आन्दोलन व्यक्तिवाद (हीरोज्म् ) पैदा करते हैं मूलनिवास एवं भू कानून पर मसले पर रोज – रोज मुख्यमंत्री बयान देकर अपनी राजनीति कर रहें । मूलनिवासियों द्वारा मुकर्रर है , जिसमें वे अपने लिऐ मूलनिवासियों का हक मानेगें,रैली के समर्थन में राज्य के जाने माने सांस्कृतिक हस्तियां अपने गीतों के माध्यम समर्थन जुटा रहे‌‌  हैं ।मूल  निवास के मुद्दे पर न्यायालय   के निर्णयानुसार निवास प्रमाण पत्र के* मामले में 09 नवम्बर 2000 से*पहले जो व्यक्ति उत्तराखण्ड में*था… वो यहाँ का*मूल निवासी है ….! क्योंकि उत्तराखण्ड इससे पहले उत्तर_प्रदेश का हिस्सा रहा तथा इस_तिथि से पहले जो इस भू भाग में रहा है ,उसे ही उत्तराखण्ड का निवासी माना गया है । मूल निवासी कौन होगा इसके_ लिये निर्धारित है कि पहाड़ों में _रह_रहे लोग मूल निवासी _होंगे तथा मैदानी जिलों में रह रहे_ लोगों को स्थाई निवासी_ माना जाऐगा । यह सवाल कुछ लोगों द्वारा प्रमुखता से उठाया जा रहा है उनके साथ यानि _मूल निवासियों के साथ भेदभाव हो रहा है । यह भी तर्क दिया जा है कि हमारे_ संसाधनों पर बाहर से बसे लोगों ने कब्जा कर दिया जबकि हकीकत यह है कि शासक वर्ग की जनविरोधी नीतियों का खामियाजा सभी लोगों को भुगतना पड़ रहा है ,चाहे वह अपने को मूल निवासी कहे या_ फिर स्थायी निवासी कहे या फिर आजीविका कमाने वाला बाहरी लोग उन सबको पहचान तथा सम्मान की _   समस्या सभी की एक  ही  समान  है ,यह भी_ सारस्वत सत्य है जितने भी लोग अपनी रोजी रोटी के लिऐ हमारे राज्य में आते  हैँ ,उससे कई गुना अधिक उत्तराखण्ड के लोग अन्य राज्यों में हैं ।_
हिन्दुस्तान का संविधान हरेक नागरिक को रोजी रोटी का अधिकार देता है ,ऐसे में यह तर्क यथार्थ धरातल से परे है कि यहाँ बाहरी लोग रोजगार न करें , सभी  को  मिल जुलकर अपने* बुनियादी अधिकारों के लिऐ एकजुटता के साथ आगे आना होगा ताकि हम सभी * *अपने भविष्य को बचा सकें । आज उत्तराखण्ड में डबल इन्जन सरकार द्वारा सब कुछ  कारपोरेट के हवाले कर दिया है मैदान से लेकर पहाड़ तक हर जगह छोटे से बड़े  काम   मोदी जी ,अमित शाह द्वारा अडाणि ,अम्बानी  को दिया जा रहा है ।दूसरी तरफ डबल इन्जन सरकार पहाड़ी ,मैदानी ,हिन्दू मुस्लिम का सवाल पैदा कर  जनता का ध्यान मुख्य समस्याओं से हटा रही है ।
दूसरी तरफ रेहड़ी ,पटरी ,ठेलियां ,खुमचा ,लधु व्यवसायियों ,गरीब बस्तियों जिनमें मूल निवासी_भी हैं, का उत्पीड़न चरम पर है ,आये दिन  अतिक्रमण की  आढ़ में  गरीब लोगों को हटाया जाना आम बात है विफल कानून का ठेकड़ा भी  पुलिस/प्रशासन /सरकार इन्हीं गरीबों पर फोड़ा जाता रहा है । _उनकी सुध लेने वाला‌ आज कोई नहीं है । औधोगिक क्षेत्रों ,निर्माण * क्षेत्रों में मजदूरों ,कर्मचारियों * से कम* वेतन देकर ज्यादा से* ज्यादा काम लिया जाता रहा है ,सभी सरकारी संस्थानों में स्थाई नौकरियों के  स्थान पर आउटसोर्स तथा* ठेका प्रथा के तहत काम चल रहा, आर्मी की सेवा को अग्निबीर के तहत स्थाई*रोजगार हसे पहले छिना जा चुका है,हमनें जिनको डबल इन्जन सरकार के नाम से बोट दिया  ,उन्होंने हमें बुरी तरह छला है ,राज्य का नीति ** *निर्धारण दिल्ली से ह़ो* *रहा* *है,वह भी* *बड़े* घरानों के हित में ! सच** तो यह है कि कारपोरेटपरस्त जनविरोधी नीतियों ने हमसे हमारे हक हकूक ,जल ,जंगल ,जमीन  छिनने के लिये किया जा रहा है ,डबल इन्जन सरकार द्वारा तमाम नीतियां जो भी बनाई जा रही हैं ,वह बड़े – बड़े घरानों के हितों के लिऐ  हैं। राज्य में जब भी भीमकाय परियोजनाऐं बनती हैं ,कारपोरेट हितों के लिऐ जंगल का अन्धाधुंध कटान ,पहाड़ों तथा पारिस्थितिकी तंत्र से छेड़छाड़ तथा जमीनों पर बड़े बड़े कब्जे होना आम बात  है।  आज चारधाम यात्रा रोड़ (आल वेदर रोड़) ,राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल प्लाजा के नाम से बसूलि आम बात है ,राष्ट्रीय राजमार्ग के संशोधित कानून के अनूरूप भबिष्य में कोई भी सड़क के  दोनों तरफ ढा़बा आदि नहीं चला पायेगा ,यदि कोई चलाता है तो उसे भारी धनराशि चुकानी पड़ेगी । इस प्रकार सदियों से रोजगार कर रहे लोगों का रोजगार छीनेगा । कारपोरेट घरानों को बुलाकर जब डबल इन्जन सरकार देहरादून में इन्वेस्टर समिट कराकर पहाड़ को बेचने का सौदा कर रही थी तब मूलनिवासियों एवं भू कानून तथा क्षेत्रीय दलों के एक भी शब्द नहीं निकले ,बल्कि  उनके लिऐ पलक पावड़े‌ बिछाये हुऐ थे , जब समिट के नाम पर करोड़ों – करोड़ रूपये लुटाये जा रहे थे , तब कोई कुछ नहीं बोला तथा मीडिया भी समिट के प्रचार ‌के लिये सरकार से अच्छे खासे विज्ञापन लेकर अच्छी  खासी कमाई करता रहा है ।
कारपोरेट घरानों को सह देने वाले भाजपाईयों से सवाल करने के बजाय  मूल निवास आन्दोलन के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि बाहर के लोग यहां बस रहे हैं,तो पूछना जरूरी हो गया उन्हें यहाँ कौन बसा रहा है  ?  अपनी रोजी रोटी की तलाश में जिस प्रकार उत्तराखण्ड समाज के लोग देशभर में जा रहे हैं, ठीक उसी प्रकार अन्य राज्यों के लोग हमारे राज्य में आ रहे हैं ,हालांकि दोनों स्थितियों में आम जन कि हालात ठीक नहीं ‌है ,उन्हे न अच्छा वेतन मिल रहा ,न सुविधाऐं तथा सामाजिक सुरक्षा के अभाव में वे विवशता में जीवन यापन कर रहे हैं  ।
हमारा प्रदेश कहने को तो ऊर्जा प्रदेश है ,पर हम सबसे मंहगी बिजली खरीदने के लिऐ मजबूर हैं।  चोर दरवाजे से काफी पैसा बढा़या गया , अपना सबकुछ दाव पर लगाने वाली पहाड़ की जनता को यह बताना जरूरी हो गया है ,डबल इन्जन सरकार द्वारा पावर सेक्टर कारपोरेट घरानों के हवाले कर दिया है । हम पांच किलो मुफ्त चावल पर  आत्ममुग्घ हैं,यह मालूम होना चाहिऐ कि इसके ऐवज में सरकार हमारा भबिष्य छिन रही है ,हमें इसके लिये भारी कीमत चुकानी पड़ रही है । हम अपने भविष्य से ज्यादा सत्ताधारियों के मकड़जाल में फंसे हुये हैँ और रामजी के भरोसे हैं कि वही बेडा़ पार कर लगायेंगे ।
कारपोरेटपरस्त नीतियों ने पहले जंगल छीने, फिर जमीन और अब सरकार हमारी पहचान छिनने पर आमादा हैं !
आज उत्तराखंड का बड़ा सवाल बड़े कारपोरेट की लूट से  राज्य  के संसाधनों को बचाना है। आज जल, जंगल व जमीन, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की लूट पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए। जमीन के कानून का सवाल भी जमीन की लूट के लिए दरवाजे चौपट खोल दिए जाने कि  बात को गलत ढंग से रखने का फायदा सत्तापक्ष व विभाजनकारी को न हो , यह ध्यान रखना ही होगा कि उत्तराखण्डी लोग उत्तराखण्ड से अधिक उत्तराखंड से बाहर रहते हैं ?
मूलनिवास और भूमि कानून का मामला बेहद संवेदनशील है, इसे बेहद समझदारी के साथ देखने-समझने-हल करने की आवश्यकता है ।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी भी राज्य के संसाधनों-जल, जंगल, जमीन पर पहला अधिकार, उस राज्य के मूलनिवासियों का होता है और होना भी चाहिए , राज्य की नियुक्तियों में भी पहली प्राथमिकता उस राज्य के मूलनिवासियों को मिलनी चाहिए । लेकिन मूल निवास को बहाल किए जाने की मांग को पहाड़-मैदान और बाहरी- भीतरी  का संवेदनशील मुद्दा बनाकर  , अंध क्षेत्रीयतावादी उन्माद खड़ा करने की कोशिश । कुछ लोगों को सस्ती लोकप्रियता तो दिला सकता है, लेकिन वह राज्य की उस बड़ी आबादी के हितों को सुरक्षित नहीं कर सकता,जिसके नाम पर यह अंध क्षेत्रीयतावाद का हौवा खड़ा  किया जा रहा है ।
क्षेत्रीय हितों या किसी राज्य के हितों की सुरक्षा और अंधक्षेत्रीयतावाद के बीच की रेखा बेहद संवेदनशील है । यह अफसोस है कि राज्य के बेहद संवेदनशील सवालों का हल, अंधक्षेत्रीयतावादी उन्माद के जरिये तलाशने की नापाक कोशिश कि जा रही है ।
राज्य में यदि जल-जंगल-जमीन जैसे संसाधनों की कारपोरेट द्वारा की जा रही लूट को अंधक्षेत्रीयतावादी उन्माद संबोधित नहीं करता बल्कि वह एक तरह से उसकी तरफ पीठ फेर लेता है. कारपोरेट द्वारा राज्य के संसाधनों को हड़पे जाने के बीच यदि छोटे व्यवसाय, कारोबार और नौकरियों में आने वालों को बड़ा शत्रु बना कर पेश किया जाने लगे तो समझा जा सकता है कि अंततः यह किसका हित साधे रहे , अंकिता भंडारी हत्याकांड में वीआईपी को बचाने में जिस सत्ता ने अपना पूरा दम लगा दिया, उस सत्ता के जो चेहरे हैं, वे कोई बाहर से नहीं आए हुए हैं. ये सब इसी राज्य के वाशिंदे  हैं,
इस मसले पर यह भी ध्यान रखने की बात है कि देश के विभाजन के समय शरणार्थी हो कर आई बड़ी आबादी को तराई में बसाया गया, उसका कोई दूसरा राज्य नहीं है तो उसके हितों की सुरक्षा भी हमारा ही जिम्मा है. दलित- गरीब- भूमिहीनों के लिए भी मूल निवास का सवाल दूर की कौड़ी ही है ।
भू कानून के मसले पर भी हमारा यह मानना है कि उत्तराखंड की ज़मीनों की बेरोकटोक बिक्री का जो अभियान विधानसभा से कानून पास करवा कर त्रिवेन्द्र रावत ने शुरू किया और पुष्कर सिंह धामी ने आगे बढ़ाया, उसे खत्म करने की जरूरत है. यह हैरत की बात है कि वही सरकार जिसने पूरा पहाड़ बेचने के लिए विधानसभा से कानून पास किया, उसी भाजपा सरकार ने “लैंड जेहाद” हौवा खड़ा कर राज्य में सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने का अभियान भी चलाया.
भू कानून के लिए गठित एक समिति की रिपोर्ट का परीक्षण करने के लिए साल भर बाद दूसरी कमेटी बनाने की पुष्कर सिंह धामी सरकार की घोषणा, हास्यास्पद और आँखों में धूल झोंकने वाली है.
भू कानून के मसले पर पहली जरूरत है कि 2018 में भू कानून में हुए संशोधन को रद्द किया जाये. कृषि भूमि के गैर कृषि कार्यों के लिए खरीद पर रोक लगे. पर्वतीय कृषि को जंगली जानवरों के आतंक से बचाते हुए उसे उपजाऊ और लाभकारी बनाने के विशेष उपाय किए जाने की जरूरत है.
उत्तराखंड को समग्र भूमि सुधार की आवश्यकता है. इसके लिए तत्काल भूमि बंदोबस्त की आवश्यकता है. भूमिहीनों को, जिसमें पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकांश दलित आबादी है, भूमि का वितरण किए जाने की आवश्यकता है और उसके पश्चात चकबंदी हो.
 बेरोजगारी, रोजगार की अवसरों की लूट, पलायन और संसाधनों की लूट से उत्तराखंड जूझ रहा है, जिसके लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार हैं. संसाधनों की लूट बड़ी पूंजी द्वारा की जा रही है. इन के विरुद्ध संघर्ष करने का कठिन-कठोर रास्ता चुनने के बजाय बाहरी-भीतरी का सस्ता रास्ता अपनाया जाएगा तो सनसनी जरूर पैदा होगी परंतु हल नहीं निकलेगा और यह प्रकारांतर से लुटेरी सत्ता और लूट की लाभार्थी बड़ी पूंजी की ही मदद करेगा ।
अन्त में हम सभी वामपंथी ,धर्मनिरपेक्ष ,जनतान्त्रिक,प्रगतिशील ताकतों कि जिम्मेदारी बनती है कि जनता की बुनियादी समस्याओं‌ंको केन्द में रखते जनमुद्दों पर संघर्ष तेज करे  ।ं