संस्मरण
” जब देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रथम चरण में था ,तभी 23 अप्रैल 1930 को पेशावर के किस्साखानी बाजार में ऐतिहासिक सैन्य विद्रोह की घटना हुई ।भारतीय गढ़वाली सैनिकों ने अपनों के बिरूध्द बन्दूकों का इस्तेमाल करने से मना कर दिया । इसके महानायक बीर चन्द्र सिंह गढ़वाली 1891 में गढ़वाल के साधारण किसान परिवार में पैदा हुऐ ।
पेशावर विद्रोह के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें 25 सितम्बर 1941 तक जेल में रखा । पेशावर विद्रोह से प्रेरित प्रभावित होकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज को संगठित किया था । जेल से रिहाई के बाद चन्द्र सिंह गढ़वाली राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन से जुड़ गये । आजादी के बाद उन्होंने गढ़वाल कुमांऊ की जनता की सेवामें में अपने को समर्पित किया।टिहरी राजशाही के बिरूध्द उन्होंने कामरेड नागेन्द्र सकलानी एवं भोलू भरदारी की शहादत के बाद टिहरी जन विद्रोह का नेतृत्व करते हुऐ सदियों से चल रही टिहरी राजशाही के गुलामी के जुये से टिहरी की जनता को सदा सदा के लिऐ मुक्त कर टिहरी रियासत का भारत में बिलय के लिऐ रास्ता खोला ।
1 अक्टूबर 1979 को 88 बर्ष की उम्र उनका देहान्त हुआ वे आजीवन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े रहे ।