देहरादून। देहरादून प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में पर्यावरण बचाओ आन्दोलन के सदस्यों ने लगातार कट रहे पेडो़ और हो रहे बडे़ पर्यावरणीय असन्तुलन के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया।सदस्य जगमोहन मेहन्दी रत्ता ने कहा,दिल्ली से देहरादून बन रहे हाईवे में हजारों पेड़ काट दिए जा रहे हैं। खलँगा के जँगलों को काटने का प्रयास किया जा रहा है। पूरे देहरादून शहर को कँक्रीट के जँगलों में तब्दील कर दिया गया है।सहस्रधारा रोड पर बडे़ पैमाने पर वृक्ष काट दिए गये।जिससे शहर की आबोहवा पर बहुत असर पडा़ है।पर्यावरण विद रवि चोपडा़ ने आज की स्थित के बारे मै कहा,अन्तराष्ट्रीय लापरवाही का शिकार हम हो रहे हैं,18वीं सदी से हर वर्ष डेढ डिग्री तापमान बढ रहा है।
2030 में देहरादून शहर का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस हो जाएगा। आशारोढी से झाजरा तक 4000 हजार पेड़ कटैंगे सड़कों के निर्माण में,हम लोग घाटी में रहते हैं,जँगल कटैंगे तो तापमान बढेगा।कँक्रीट के जँगल लगातार बढ रहे हैं।मियाँवाला,बालावाला,नकरौंदा,क्षेत्र में लगातार पेड़ कट रहे हैं,गाडि़यों की सँख्या बढ रही है।जिनके धुवैं और गैसों से तापमान बढ़ रहा है।सड़कों पर जिनका रोजगार है वो लोग कैसे अपना जीवन यापन करैंगे।पर्यावरण गोष्टी में रूचि ने पर्यावरण और तापमान के बढ़ने पर चिन्ता ब्यक्त की,रात और दिन में तापमान बढा रहता है रातों में घटता भी नहीं है।ऐसे में बच्चों को कैसे घर से बाहर निकाला जाए,बैठक में हिमाँन्शू जी ने कहा वो ग्रीन दून से जुडे़ रहे हैं।हमनै पेड़ कटनै पर जब पोस्ट डाली तो लोग लगातार विरोध करनै लगे आज तापमान43 डिग्री पर हो गया है।तो वो लोग भी चुप हो गये हैं।
सरकार का जो मैन वोटर है मध्यमवर्गीय और निचला तबका,वो लोग पर्यावरणीय असन्तुलन के शिकार हैं।बडे़ बडे़ माल बन रहे हैं और इनको बननै में पेड़ काटे जा रहे है।खलँगा में 2000 पेड़ नहीं लगभग 4000 पेड़ काटनै की तैयारी है।हर नीति के लिए विकाश का रोना रोया जा रहा है। हम लोग इन पेडो़ को बचाने के लिए आन्दोलन कर रहे हैं।मूलभूत शहरी नागरिक इनकी योजनाँओं से परैशान हैं। कहते हैं हमनै पेड़ लगाए जब हमनै पूछा तुमने कहाँ कहाँ पेड़ लगाए कितने पेड़ जिन्दा हैं तो कुछ नहीं कह पाई सरकार।पत्रकार वार्ता में भट्ट ने कहा देहरादून की एक खासियत हुआ करती थी जो यहाँ आया यहीं का हो गया।
इस शहर में सैकडो़ बाग और नहरैं हुआ करती थी सारे बाग खो गये और सब नहरैं सूख गयी,बासमती की खुशबू,लीची के बाग,इस शहर के निवासियों के लँग्स थे साँसें थी 0र आज विकास के नाम पर सबकुछ उजाड़ दिया गया है।हमारे यहाँ पेड़ ही नहीं अपितु जँगल काटे जा रहे हैं वहाँ की वनस्पतिक्षखत्म हो रही है।जँगल उजाड़ने कटनै से समूचा पारिस्थितकीय तँत्र खराब हो रहा है।आज मध्यमवर्गीय और मजदूरों का जीवन गर्मी पड़ने से दूभर हो गया है।हमको जो विकाश चाहिए ये हमको तय करना होगा।ऐसा विकाश नहीं चाहिए जिससे मानव जाति का जीना दूभर हो जाय,लोकल नागरिकों,की सहमति,ग्राम पँचायतों,क्षेत्र पँचायतों ,जिला पँचायतों की सहमति पर विकास की नीति बननी चाहिए।थोपा हुआ विकास हमको नहीं चाहिए जिससे सब मनुष्यों को खतरा हो।पत्रकार वार्ता में सभी वक्ताओं ने इन नीतियों का और योजनाँओं का विरोध किया।