–सुभारती ट्रस्ट से धोखाधड़ी के मामले में हुई गिरफ्तारी
देहरादून: सुभारती ट्रस्ट से धोखाधड़ी के मामले में आरोपी मनीष वर्मा के भाई संजीव वर्मा को पुलिस ने देहरादून कचहरी परिसर से गिरफ्तार कर लिया है। वहीं, मनीष वर्मा और उनकी पत्नी ने एसीजेएम तृतीय की कोर्ट में सरेंडर कर दिया है। कोर्ट के आदेश पर दोनों को ज्यूडिशियल कस्टडी में जेल भेज दिया गया है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुपालन में मनीष वर्मा शुक्रवार को पत्नी और भाई के साथ सरेंडर के लिए ट्रायल कोर्ट में हाजिर हुए थे लेकिन अदालत ने उन्हें आरटीपीसीआर रिपोर्ट दिखाने को कहा। रिपोर्ट न होने के कारण कोर्ट ने पहले 72 घंटे की रिपोर्ट जमा करने के बाद ही सरेंडर के आदेश दिए थे।
विदित है कि धोखाधड़ी के एक मामले में सर्वाेच्च न्यायालय के निर्देश के क्रम में आपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट ने 16 अगस्त को मनीष वर्मा उनकी पत्नी व भाई की जमानत रद्द कर दी थी। कोर्ट ने उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी किया था। लेकिन 18 अगस्त को जिला एंव सत्र न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगाते हुए उनकी जमानत मंजूर कर ली। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जिला एंव सत्र न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी और दो दिन के भीतर ट्रायल कोर्ट में सरेंडर करने को कहा था।
मनीष वर्मा के वकील रजनीश गुप्ता ने बताया कि कोर्ट के आदेश के बाद वह शुक्रवार को सरेंडर करने को गए थे, लेकिन कोर्ट ने आरटीपीसीआर रिपोर्ट मांगी थी। जो उनके पास नहीं थी। जिसके बाद कोर्ट ने आरटीपीसीआर रिपोर्ट के बाद ही सरेंडर करने को कहा था।
सुभारती ट्रस्ट के ट्रस्टी की शिकायत पर मनीष वर्मा, उनकी पत्नी व भाई संजीव वर्मा के खिलाफ वर्ष 2012 में मुकदमा दर्ज किया गया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने ट्रस्ट को 100 बीघा जमीन बेचने का अनुबंध किया था, लेकिन मौके पर जमीन केवल 33 बीघा ही पाई गई। ऐसे में उन पर आरोप लगा था कि उन्होंने करीब 67.5 बीघा जमीन के कागजात फर्जी दर्शाए थे। 2014 में इस मामले में आरोपपत्र भी दाखिल किया गया था। इस बीच वादी ने सुप्रीम कोर्ट में इस मुकदमे के जल्द विचारण की अपील की थी।
आरोप है कि इस सुनवाई के दौरान प्रतिवादी पक्ष यानी वर्मा परिवार कोर्ट में उपस्थित नहीं हुआ था। इसके लिए सर्वाेच्च न्यायालय ने आदेश दिए थे कि अभियोजन वर्मा व उनकी पत्नी और भाई की जमानत निरस्तीकरण का प्रार्थनापत्र कोर्ट में प्रस्तुत करें। इन आदेशों के क्रम में ही एसीजेएम तृतीय की कोर्ट ने 16 अगस्त को आदेश पारित किए थे।